सतरंगी स्वेटर

सतरंगी स्वेटर

 
सर्दी ने दस्तक देना शुरू कर दिया है, धूप खिल कर निकल रही है, संदूको अलमारियों से गर्म कपड़े, कम्बल, रजाई निकल कर धूप में पसर रहे  है, रसोई से अदरक और दालचीनी वाली चाय की खुश्बू गलियारे में फैल रही है , गर्म गर्म अरहर की दाल में जीरे और लहसुन के छोंक के साथ घी की खुश्बू से मुंह मे पानी भर भर आ रहा है । सौंठ और गुड़ का काढ़ा प्यालों में जगह ले रहा है । सर्दियां अपने आप में  स्वाद और अहसासों का पूरा मौसम है । सर्दियां आते ही हज़ारों रंग और डिजाइन के स्वेटर पहने लोग नज़र आते ।
ऊन और सलाई अब पुराने ज़माने की बात हो गई पर आज भी कहीं न कहीं कोई न कोई माँ का प्यार अपने शरीर पर लपेटा नज़र आ जाता है तो सच कहूं उस स्वेटर की गर्माहट आंखों से होते हुए दिल मे उतर जाती है ।
मोहल्ले भर की छतों पर गर्म कपड़ों का राज़ था, मानों हमें गर्माहट देने से पहले ये कपड़े खुद में  सूरज की ढ़ेर सारी ऊर्जा समेट लेना चाहते हो ।
आज सुबह स्कूल जाते हुए अहसास हुआ कि समय आ गया है कि पेटी,अलमारी, संदूक खोले जाए और गर्म कपड़े की धुलाई और सिंकाई की जाएं , अपने आप को हिम्मत बांधते हुए मैंने स्वयं से वादा किया कि,इससे पहले की सर्दी खांसी का शिकार बनूं इस संडे ये काम कर ही लूंगी ।
ख़ैर संडे भी आ गया और  मैं कमर कस कर तैयार हो गई अलमारी और पेटी में रखे हुए गर्म कपड़ों से भरे मैदान-ए-जंग-जंग में कूदने के लिए ।
जैसे जैसे अलमारियां खुलती गई, गर्म कपड़ों का ढ़ेर बढ़ता गया, कौन से गर्म कपड़े ड्राई-क्लीनर को देने है,कौन से कपड़े बाई से धुलवाने है,किन गर्म कपड़ों को बस धूप दिखानी है इस माथा-पच्ची में मेरा दिमाग बुरी तरह से घूम रहा था ।
मुझे चाय की सख़्त ज़रूरत महसूस होने लगी, चाय का प्याला हाथ में ले कर  मैं फिर से काम में जुट गई ,बेटा भी मेरा साथ दे रहा था, तभी उसने एक बड़ा सा बैग निकाला जिसके ऊपर एक पर्ची चिपकी हुई थी " मम्मी की स्वेटर" , बेटे ने बड़ी ही उत्सुकता से लगभग चिल्लाते हुए कहा "मम्मा ,नानी के बनाये स्वेटर,प्लीज -प्लीज इसे खोलो न .....!
मैं उस बैग को खोलना नहीं चाहती थी,क्योंकि वे केवल स्वेटर्स नहीँ  थे ,यादों के अनमोल और अनगिनत धागे थे, गर्माहट स्नेह और ममत्व में लिपटे और गूंथे हुए ,और मैं अभी इनमें बंधना नहीँ चाहती थी,पर बेटे के काफी मनुहार के बाद मैंने उसे वह बैग खोलने की इजाज़त दे दी,और तैयार हो गई उसके सैकड़ो सवालों का जवाब देने के लिए ।
बस फिर क्या था, अनगिनत स्वेटर और उनकी कहानियां का सिलसिला करीब घण्टे भर तक चलता रहा,फिर बेटे के दोस्त ने आवाज़ लगाई और वो चल दिया  नानी का बनाया हुआ मफलर गले मे लपेट कर और  मैं रह गई स्वेटर्स के समंदर के बीचों बीच ,हर स्वेटर अपने साथ यादों की एक लहर ले आता और मेरे अंतर्मन को खींच कर अतीत में ले जाता ।
स्वेटर्स के ढेर से मैंने सतरंगी स्वेटर को उठाया ,जाने कितनी ही यादें जुड़ी थी इस सतरंगी स्वेटर से | मैंने हाथों में स्वेटर को भर कर अपने गले से लगा लिया, मानों माँ के अंक में समा रही हूं, माँ का प्यार,दुलार,सख़्ती, मनुहार,दिलासा,झिड़की सब कुछ था इस स्वेटर में, सात रंगों से बुना ये स्वेटर अहसासों का जाला था, ममत्व से लबरेज़ !
एक साल सर्दियों के शुरू होते ही माँ ने मुझसे पूछा कि, अच्छा बताओ इस बार कौन से रंग का स्वेटर बनाऊ तुम्हारे लिए , " हम्म्म्म ओके मां सोच कर बताती हूँ " कह कर मैं सोच में पड़ गई कि कौन सा रंग चाहिए मुझे ,बहुत सोचा पर कुछ समझ में नहीं आया क्योंकि मेरे पास तो सारे कलर के स्वेटर थे  ।
मम्मी हर साल सर्दियों में दो या तीन स्वेटर बनाती थी , तो मैंने मम्मी से कहा कि मुझे  इस बार सतरंगी कलर का स्वेटर चाहिए और मां सोच में पड़ गई ।
दूसरे ही दिन से माँ पूरी लगन के साथ मिशन-सतरंगी-स्वेटर पर काम करने लगी ।
हर रंग का ऊन खरीदने के लिए मम्मी ने जाने कितनी बार बाजार के चक्कर लगाए वह मेरे लिए सतरंगी स्वेटर नहीं सतरंगी स्वप्न बुन रही थी ।


सोते जागते उठते बैठते उनका दिमाग सलाइयों के साथ स्वेटर की डिजाइन की उधेड़बुन में लगा रहता कभी इसके पास तो कभी उसके पास जाकर स्वेटर के डिजाइन के बारे में चर्चा किया करती ,मानो इस बार कुछ अनोखा ही बना कर दम लेंगी  कुछ ऐसा जो मैंने पहले कभी ना पहना हो ।कुछ ऐसा जो उन्होंने पहले कभी न बनाया हो ।
सुना था बाजार में कुछ ज्यादा ही मुलायम और कुछ चमकीले ऊन आए है, मम्मी के पास जाने कितने पैसे थे नहीं थे पर मैंने उन्हें अपने पर्स के जेबों को झाड़ते हुए देखा था, उनका बस चलता तो मेरे स्वेटर के लिए वह बैंक से लोन उठा लेती ।
घर के काम और नौकरी के बीच तालमेल बैठाते हुए मम्मी मौक़ा निकाल ही लेती सतरंगी ऊनो  को सलाइयो में गूँथने का ।
सर्दियां ने ज़ोर पकड़ लिया था,  यू तो मेरे पास स्वेटर बहुत थे पर इंतज़ार मुझे उस सतरंगी स्वेटर ही का था ।
हम बच्चे स्कूल पिकनिक पर जाने वाले थे, मैनें मम्मा को बताया कि हम अगले हफ्ते पिकनिक पर जा रहे है, मुझे सतरंगी स्वेटर चाहिए ,सुनते ही मां के माथे पर शिकन आ गई , अलग डिज़ाइन बनाने की ख्वाहिशमंद मेरी मम्मी स्वेटर बनाती फिर उधेड़ती और इन्ही कारणों से स्वेटर अधूरी थी ।
मेरा मन भी इस शंका में उदास हो रहा था,की क्या  पिकनिक के दिन तक मेरी स्वेटर तैयार हो जाएगी ।
पिकनिक जाने के दो दिन पहले तक सात रंगों के ऊन सलाइयों में उलझे हुए था, स्वेटर लगभग बन चुका था पर अभी भी काफी कुछ बाकी थी,मेरा मन खीज से भर गया ," मम्मा क्यों मेरा स्वेटर पूरा नहीं करती, " !
दूसरे दिन मैं जब स्कूल से वापस आई तो मम्मी घर पर नहीं थी, पता चला मम्मी बाजू वाली आंटी के साथ मार्किट गई है, सुन कर मन खराब हो गया ,घर वापस आओ और मम्मी घर पर न मिले तो मन ऐसा घबराता है मानों जंगल मे भटक गया हो, बहुत देर हो गई थी, मम्मी अभी तक नही आई थी, पापा से जाने कितनी बार पूछ चुकी थी पापा भी खीज़ चुके थे , उनकी बड़बड़ाहट जारी थी, बच्चे परेशान हो रहे है, शाम की चाय नसीब  नहीं हुई अभी तक,और मेडम का पता नहीं है अभी तक"। कुछ और देर गुज़रने के बाद दरवाज़े पर आहट होते ही मैं पूरी गति से मम्मी की तरफ भागी पर इससे पहले की मैं मम्मी से लिपटती ,पापा की भारी और गुस्से भारी आवाज़ सुनते ही  मेरी घिग्घी बन गई । " ये क्या समय है घर आने का , कुछ परवाह है या नही घर की , और ये स्वेटर का भूत उतारो सर से ,सारी सर्दियां तो तुम पर ही गिर है"। पापा के गुस्से से मम्मी का मुंह उतर गया, चुपचाप सर झुकाये वो अपने काम में जुट गई, और मेरा बालकमन अपराध-बोध से भर गया, मेरा अंतर्मन मुझे दोषी ठहराने लगा ,"सब तुम्हारी गलती है, तुमने ही मम्मी को इस स्वेटर के जंजाल में फंसाया है"   ।  मेरा मन टनों भारी हो गया,मैं दौड़ कर मम्मी के पास पहुँची, और पीछे से उन्हें अपने छोटे-छोटे से हांथो से आलिंगन में भर लिया और भर्राए गले से बोल उठी , सॉरी माँ ये सब मेरी वजह से हुआ है न, न मैं सतरंगी स्वेटर मांगती न आपको पापा से इतनी डांट पड़ती "।
"अरे नहीं मेरी प्यारी बेटी ऐसा नहीं है, मम्मी ने बड़े स्नेह से मुझे अपने अंक में भरते  हुए कहा , पापा तो बस इसीलिए नाराज़ हुए की उन्हें शाम को मेरे हाथ की बनाई हुई चाय नही मिली ", मम्मी ने मुझे बहलाते हुए कहा ,
पर मैंने बिलखते हुए कहा , " मम्मी आप परेशान मत हो, मेरे पास और भी तो स्वेटर है मैं कोई भी पहन कर चली जाऊंगी ,आप परेशान न होना " ।
"मेरी समझदार गुड़िया", कहते हुए माँ ने मेरी गालों पर लुढ़क आये आंसुओ को पोछा,और उनकी खुद की आंखे नम हो गई ।
और मैं सचमुच उस सतरंगी स्वेटर के बारे में भूल गई मुझे तो बस मम्मी खुश दिखनी चाहिए थी ।
दूसरे दिन  मेरे पिकनिक टिफिन की तैयारी में मम्मी अलसुबह ही उठ गई,किचन से उठती खुशबुओं से पूरा घर महक उठा था , मम्मी ने बड़े प्यार से मुझे उठाया और नहाने भेज दिया ,जब मैं नहा कर लौटी तो देखा कि मम्मी ने बड़ी सुंदर फ्रॉक निकाली थी मेरे पहनने के लिए ।
मम्मी किचन से निकली तो उनके हाथ मे  एक छोटी बास्केट थी जिसमें  2-3 छोटे बड़े टिफ़िन ,पानी की बोटल फ्रूट्स कुछ चिप्स के पैकेट्स रखे हुए थे । बास्केट देख कर मेरा मन खुश हो गया
"आज तो मज़ा ही आ जायेगा मम्मी , थैंक यू ,कहते हुए मैनें मम्मी को गले लगा लिया ।
"अच्छा-अच्छा,चलो अब तैयार हो जाओ , कहते हुए मम्मी मुझे तैयार करने में लग गई,गुलाबी कलर की बड़ी ही प्यारी फ्रॉक लाई थी मम्मी मेरे लिए ,मुझे फ्रॉक पहनाने के बाद उन्होंने कहा ," आंखे बंद करो", फिर उन्होंने कहा,"चलो आंखे खोलो अब", ! और मेरे आंख खोलते ही मेरे सामने सतरंगी स्वेटर था, इतना खूबसूरत इतना प्यार,सात रंगों से बना हुआ,दुनिया का सबसे सुंदर स्वेटर ।
मम्मी ने मुझे स्वेटर पहनाया और मेरी बलाएँ ली,घर मे सबने बहुत प्यार किया मुझे,सुबह से ले कर पिकनिक खत्म होते तक मुझे सैकडों कॉम्प्लीमेंट मिले, सहेलियों के टीचर्स के कॉलोनी के ऑन्टीयों के, मैं तो जैसे सातवें आसमान पर थी ,हर कोई मेरा स्वेटर छू कर देख रहा था ।
मम्मी की मेहनत रंग लाई, शाम होते हम सब बस में बैठ कर घर की तरफ लौटने लगे तब ठंडी हवाओं से मुझे बचाती मेरी स्वेटर का आकार मानों और विराट हो गया, मुझे यूं अहसास हुआ मानों माँ ने मुझे अपनी स्नेहिल बांहों में समेट लिया हो , माँ के स्नेह में लिपटी मैं घर कब पहुँची पता ही नही चला ,घर पहुँचते ही मैं बड़ी आतुरता से माँ से लिपट गई सब पूछ रहे थे,कैसी रही पिकनिक पर मैं तो जैसे बस मम्मी को अपने अंतर्मन में बसे प्रेम से सराबोर कर देना चाहती थी,  मैं माँ के प्रति कृतार्थ थी ।
रात को मम्मी से चिपट कर सोते हुए जब मेरी आँखें खुली तो देखा , मद्धम रोशनी में मम्मी का चेहरा कितना पुरसुकून लग रही था , जाने कितने दिन और कितनी रातें बेचारी मम्मी परेशान हुई मेरे स्वेटर के लिए, बचाये हुए पैसे मेरी अनोखी स्वेटर के ऊन खरीदने में खर्च हो कर दिए, पापा की डांट खाई,दादी के ताने सुने और जाने क्या क्या ।
आज  एकबार  फिर सतरंगी स्वेटर की यादों के सतरंगी रंग मेरे जीवन में फैल चुके थे ,मेरी आँखें पनीली हो गई थी ,लगा कि दौड़ कर घर जाऊं और मम्मी के अंक में समा जाऊं ।
मैं अपने गालों पर फिर से मम्मी के हाथों की छुवन को महसूस करना चाहती थी ।
स्वेटर बुनने का सिलसिला चलता रहा मेरे बेटे के जन्म पर तो जैसे स्वेटरों का अम्बार लगा दिया था मम्मी ने ।
आज भी ऊन सलाइयां देख कर उनका मन स्वेटर बुनने को चाहता है पर आंखे साथ नहीं देती ।
बड़ी मुश्किल से मैं अपने आप को समेट पाई ,मैं जानती थी कि हर साल सर्दियां आएंगी और मम्मी और स्वेटर की यादें सुनहरी धूप बन कर मेरे मन के आंगन में  बिखर जाएंगी ।

मीता. एस. ठाकुर





















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