"मैं कान्हा"

" मैं कान्हा "


दीक्षित मैडम के लिए पीहू की कोई रॉय नहीं थी, वो न तो उसे  बुरी लगती थी,न अच्छी ।
दिखने में एकदम गुल्लम-गुल्लम ,गोरा रंग ,ऊंचा जूड़ा आंखों पर मोटी ऐनक,उस पर भारी आवाज़ और दूध जैसा साफ रंग 
कुल मिला कर काफ़ी लोगो की पसंदीदा थी मैडम
पर पीहू के लिए वह ठीक ठाक ही थी ।
वह उस दिन उसके लिए खास बन गई जब , उन्होंने प्यार से गाल पर चुटकी काटी और बड़े लाड़ से बोली " पूरी कान्हा लगती हो,अबकी बार डांस में तुम्हे ही कान्हा बनाएंगे " !
बस फिर क्या था,उस पूरे दिन तो पीहू  मानों आसमान की सैर पर थी ,  ख़्याल और पैर ज़मीन पर टिक ही नही रहे थे ।
घर आ कर उसने हर एंगल से अपना चेहरा निहारा और ये जाँचती रही कि वह और सटीक रूप से कैसे कान्हा दिख सकती है।
पीहू ने खुद का आंकलन किया, हल्का चम्पई रंग  घुँघराले बाल ,बड़ी बड़ी आंखे और गोलगप्पे जैसे गाल और गालों पर पड़ता डिंपल ।
लगता था जैसे कान्हा में और उसमें केवल रंग का ही अंतर था ,वो सांवले सलोने थे और पीहू चम्पई रंग की

उन दिनों ,पीहू 5वीं क्लास में थी, दूसरे दिन क्लास में ये बात फैल गई कि अबकी कान्हा का रोल पीहू करने वाली है
वो सारी लड़कियां जो अब तक उसे भाव नहीं देती थी आ आ कर उससे से बातें कर रही थी , सब अपनी रॉय दे रही थी,कोई उसकी घुँघराली लटों में उंगलियां फंसा रही थी ,तो कोई मारे जलन के उसकी और देख भी नही रही थी ।
उस पूरे दिन  तो  पीहू मानों सेलिब्रिटी ही बनी हुई थी,
अचानक से मिली इतनी इज्ज़त और भाव ने उसे दीक्षित मैडम का कृतज्ञ कर दिया था ।
वह मन ही मन दीक्षित मैडम की आभारी हो रही थी  ।
आज अगर कोई उससे पूछता की तुम्हारी फेवरेट मैडम कौन है तो वो गला फाड़ कर कहती "दीक्षित मैडम" ।
वह रोज बागीचे का सबसे खूबसूरत फूल तोड़ कर मैडम के लिए ले जाती, और मैडम भी उस फूल को अपने जुड़े में लगा लेती ।
पीहू का स्कूल कस्बे के प्रतिष्ठित स्कूल था , 26 जनवरी ,या 15 अगस्त को नगर पालिका द्वारा बनाये विजय स्तम्भ चौक पर ही सारे स्कूलों के सांस्कृतिक प्रोग्राम हुआ करते थे । एक मात्र इंग्लिश स्कूल होने के कारण स्कूल को काफी तवज़्ज़ो भी मिला करती थी ।
पीहू सोचने लगी कि उसके लिए ये कितना गर्व का विषय होगा जब दादा-दादी मम्मी-पापा और मेरा पूरा खानदान  उसे देखेगा । वरना तो तहसीलदार,थानेदार,डॉक्टर,नगरपालिका अधिकारी,व्यापारी आदि के बच्चों के सामने उसकी सुंदरता फीकी ही पड़ जाती थी ।
वो तो भला हो दीक्षित मैडम का जिन्होंने उसको देखा और चुना ।
अभी जुलाई का अंतिम सप्ताह चल रहा था , 15 अगस्त में ज्यादा दिन नहीँ थे , पीहू को बेसब्री से इस बात का इंतज़ार  था कि  आज मैडम उसे बुलाएंगी,आज रिहर्सल शुरू होगी 
जैसे जैसे दिन नज़दीक आ रहे थे उसका बालमन सपनों के गुंथारे में फंसता जा रहा था ।
उसने ज़िद करके बाजार से पिले रंग की सिली हुई धोती मोर पंख ,बांसुरी,नकली मोतियों की माला ,सर का मुकुट बाजूबन्द सब खरीदा ।
वह अपनी तैयारी मैं किसी तरह की कमी नही रहने देना चाहती थी ।
दादा दादी ,बड़े पापा, छोटे चाचा, बुआ सभी को उसने चहकते हुए अपनी उपलब्धि बताई और वादा भी लिया कि, वे सब उसका डांस देखने आएंगे ।
उसका मन करता दीक्षित मैडम के गोरे-गोरे फूले हुए गालों पर चिकुटी काटते हुए  बोले कि "मैडम आप कितनी अच्छी हो " ।

एक दिन घर पर मम्मी ने उसे कान्हा की तरह तैयार किया और उसे देख कर उसकी बलाएं लेने लगी ।
उसकी चपल सुंदरता देखती ही बन रही थी,ऐसा लग रहा था मानो सुभद्रा कुमारी चौहान ने उसे ही देख कर "यह कदम्ब का पेड़ "वाली  कालजयी कविता लिखी हो ।

दसरे दिन सारा सामान एक बैग में भर और अपने छोटे से दिल मे ढेरों सपनें लिए पीहू स्कूल पहुंची , लंच टाइम के बाद उन सभी बच्चों को रिहर्सल रूम में बुलाया गया जिन्हें 15 अगस्त के सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए चुना गया था ।
पीहू,बड़ी बेसब्री से अपने नाम के बुलाये जाना  का इंतजार करती रही स्कूल खत्म होने को आ रहा था ,लेकिन अभी तक उसका नाम नहीं बुलाया गया उसके इंतजार की सीमा समाप्त हो रही थी वह रिहर्सल रूम की तरफ अपना बैग उठाए दौड़ पड़ी और मैडम के पास पहुंचते ही उसने पहला सवाल दागा "मैडम आपने मुझे नहीं बुलाया मुझे ही  तो चुना गया था कान्हा के रोल के लिए, देखिए मैं तो सारा सामान लेकर आई हूं मेरे पास कान्हा का पूरा ड्रेस भी है ।
पिहू एक सांस में सब बोल गई
और अपनी बड़ी बड़ी आंखों में विस्मय भर मैडम को देखती रही ।
पर मैडम तो जैसे कुछ सुन ही नहीं रही थी उन्होंने पिहू को टालने की गरज़ से कहा, "ठीक है,ठीक है,बताओ ज़रा समान तुम्हारा, " उसका सारा सामान देख कर मैडम के चेहरे पर मुस्कुराहट खिल गए, वे पूरा समान उठा कर स्टाफ रूम की तरफ चल दी, पिहू भी पीछे पीछे चल दी ।
कुछ देर बाद जब मैडम बाहर निकली तो उन्होंने पिहू से जो  कुछ कहा वह पिहू के भोले से मन की सतह पर उल्का-पिंड की तरह गिरा ।
वह तो मानो अचेत ही हो गई , कान  शून्य हो गए और ज़ुबाँ तालू से चिपक गई ।
"पिहू,इस बार नही अगली बार कान्हा बन जाना तुम,इस बार तो "रिनी" को कान्हा बनाया है, और सुनो रिनी हफ्ते भर पहले ही ट्रान्सफर होके आई है,तो प्रिंसिपल मैडम ने कहा है कि तुम उसे अपना ड्रेस दे दो, स्कूल में गोपियों की ड्रेस रखी है,तुम चाहो तो  अभी गोपी बन जाओ,अगली बार कान्हा तुम ही बनना "।
रिनी के पिता इस कस्बे के नए टी.आई थे, इसीलिए उसे कान्हा बनाया गया , नई आई है इसीलिए समान का बंदोबस्त करने में परेशान होगी इसीलिए तुम्हारा ड्रेस दे दिया उसे ऐसा पिहू की सहेली श्रद्धा ने उसे बताया था ।
दीक्षित मैडम ने कितने सामान्य तरीके से असामान्य बात कह दी ।
ज़रा भी नही सोचा उसके बारे में,  कि उस पर क्या बीत रही होगी ।पिहू का मन मानों रोलर कोस्टर पर सवार हो गया, 
नन्हे से मन को विचारों के द्वंद ने घेर लिया ,हर विचार बड़ी निर्ममता से उसे ज़मीन पर पटक देता ।
स्कूल से घर तक कि दूरी उसने दुगने समय मे पूरी की , पैर भारी लग रहे थे ,और मन बोझल, आंखों के बार बार भर आने के कारण अब पिहू ने आंखे पोंछना ही बन्द कर दिया था, काजल के बहने से चेहरे पर आड़ी-तिरछी रेखाएं बन गई थी ।
घर पहुँची तो पता चला पापा-मम्मी घर पर नहीं थे, अच्छा ही हुआ,उसकी हालत अभी किसी सवाल का जवाब देने की नही थी ।
किसी तरह कपड़े बदल कर वह धम्म से औंधे मुँह बिस्तर पर गिर पड़ी, उसका सुबकना फिर शुरू हो गया, और जाने कब सुबकते सुबकते पिहू सो गई ।
सपने में जाने क्या क्या देखती रही, दीक्षित मैडम का मुस्कुराता चेहरा ,उसे मना करते हुए उनके चेहरे के भाव,
उस पर हँसती उसकी सहेलियां , उस पर हंसते स्कूल के सारे बच्चे , उससे दूर होती कान्हा की ड्रेस । 
पिहू की आंख तब खुली जब उसने मम्मी के स्नेहिल हाँथो को अपने चेहरे पर महसूस किया ।
"क्या हुआ बेटा, तबियत तो ठीक है, चलो उठो,शाम घिर आई है "।
आने वाले कई दिनों तक पिहू अनमनी रही, 
दीक्षित मैडम अब उसे अच्छी नहीँ लगती थी,उन्हें विश करने से उसके दिल ने मना दिया था ।
जब भी वह दीक्षित मैडम और रिनी को साथ देखती ,उसका नन्हा मन दहक उठता ।
जाने क्या देखा मैडम ने "रिनी" में काली-कलूटी बैंगन-लूटी ,मरी-मराई मरघिल्ली " ,श्रद्धा ने पिहू से कहा ।
पिहू ने उनकी तरफ से अपना मुँह घेर लिया ।
फाइनल रिहर्सल के दिन सारे बच्चे स्कूल के प्रांगण में बैठा दिए गए ।
अभी कान्हा वाले डांस में थोड़ी देर थी, मैडम ने उसे बुलाया और कहा कि, बाकी बच्चों को तैयार करने में मदद करें , पिहू का जी नहीँ चाह रहा था पर, कहना तो मानना ही था ।
वो श्रद्धा के साथ क्लासरूम में चली गई जहाँ टीचर बच्चों को तैयार कर रही थी ।
पिहू भारी मन से कभी की ड्रेस में पिन लगाती तो कभी चुनरी पकड़ती ,और जो भी कहा जाता उसे करती ।
कान्हा वाले डांस के लिए भी बच्चे तैयार हो रहे थे,
पिहू उस ड्रेस को देख रही थी कि, जिसे उसने कितने अरमानों के साथ खरीदा था, वो मोर पंख ,जिसे उसने कई दुकान देखने के बाद खरीदा था ,नकली मोतियों की माला जिसके हर मोती में कान्हा बनने का सपना कैद था ,वो सिली धोती , बांसुरी,मुकुट मानो सब पिहू से संवाद कर रहे थे, मानो कह रहे हो, "पिहू हम तुम्हारे है, किसी और के नही ",।
  उसका बाल सुलभ मन अंगारों से घिर गया था,आक्रोश अपनी सीमा लांघ रहा था, डर खत्म हो चुका था , कुछ अपमान और कुछ उपेक्षा ने उसकी चेतना छीन ली , जाने कब कैसे पिहू के हाथ कैंची की तरफ बढ़ गए, और पल भर में कान्हा की ड्रेस  3-4 भागों में कट चुकी थी,मोतियों की माला के सारे मोती बिखर चुके थे,मोर पंख तो टुकड़ो में बंटा हुआ था, और बांसुरी टूट चुकी थी ।
क्लास में शोर मच गया,रिहर्सल रुक गई, दीक्षित मैडम के कानों पर भी वज्रपात हुआ,वे दौड़ी दौड़ी क्लासरूम में पहुँची तो कान्हा की ड्रेस और बाकी समान की हालत देख कर उनके होश फाख्ता हो गए ।
बौखलाहट में उन्होंने पिहू के गालों पर 2-4 चांटे खींच कर मारे ।"पागल लड़की ये क्या किया, दिखने में कितनी भोली है ,पर हरकत देखो इसकी,उफ अब रिनी का क्या होगा," कहते हए मैडम ने अपना सर पीट लिया ।
ज़ोरदार तमाचों से उसके गाल टमाटर की तरह लाल हो गए,पर आंखों में आंसू नहीँ आये ।
और न ही  पिहू को दर्द  हुआ, जो दर्द उसके मन को पहुँचा था उसके आगे तो ये कुछ भी नहीँ था ।
उसने झुक कर सारा सामान समेटा और उसे अपने सीने से लगा कर संभाले हुए क्लास से निकल गई।
छुट्टी की घण्टी बज चुकी थी, बच्चे क्लासेज से निकल रहे थे , पीहू किसी स्वप्न की अवस्था मे चली जा रही थी , उसका स्कूल बैग भी संभाले ,श्रद्धा उसके पीछे दौड़ रही थी 
पिहू...पिहू....रुक तो सही
पर पिहू नहीँ रुकी,वो चलती गई....!!

By
Madam Hakuna Matata
Aka .Meeta s Thakur








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