तुम्हारी बाँहे जैसे पीतल की है "माँ"

तुम्हारी बाँहे जैसे पीतल की है "माँ"
मैं धरा हूँ, जीवन देती , पोषण देती
पर तुम "सूर्य " हो मेरे जीवन की "माँ" ।
तुम बिन जीवन मुझमेँ पनप नहीं सकता
तुम वर्षा हो,ऊष्मा हो , ऑक्सीजन हो
मेरी जीवन की "माँ"  ।
निष्ठुर जीवन के प्रहारों से सदा बचाती आई मुझको
तुम्हारी बाँहे जैसे पीतल की है "माँ" ।
तुम्हारे साँवले चेहरे की झुर्रियों में
मेरा बचपन मुस्कुराता है
तुम ही थी मेरा खेल-खिलौना
तुम ही मेरी हो सहेली "माँ" ।
तुम ही कथा तुम ही गाथा
तुम हो मेरी निर्माता
मैं सदा रहूंगी ऋणी तुम्हारी "माँ" ।


मीता. एस .ठाकुर

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