साथ एक कप चाय का ..!!

साथ एक कप चाय का 

आज सुबह से ही किचन में अफरा-तफरी मच गई थी रसोई तो जैसे कुंभ का मेला बन गई थी, जाने कितने पैर आ-जा रहे थे ,हर तरफ रेल पेल मची हुई थी ।
कोई मटकी से पानी पीना चाहता है ,तो कोई फ़्रिज से ,तो किसी को उबला पानी चाहिए था ।
नाश्ते में किसी को पोहा चाहिए तो कोई उबला अंडा ब्रेड के साथ खाएगा किसी को आलू पराठा ,तो कोई साबूदाने की खिचड़ी का दीवाना था ।
कुल मिलाकर रसोई एक प्लेटफार्म की तरह लग रही थी धक्का-मुक्की भी चल रही थी और काम भी हो रहा था ।
बीच-बीच में रेलवे स्टेशन की तरह अनाउंसमेंट भी हो रहे थे कि,चाय दोबारा बना दो, शक्कर कम डाला करो
 पोहे में नमक थोड़ा ज्यादा हो गया, साबूदाने की खिचड़ी में मूंगफल्ली कच्ची थी इत्यादि ।
 इन सबके बीच अनु के हाथ तेजी से चल रहे थे । काट कर रखी हुई सब्जी को छौंक लगा कर , दूसरी तैयारी में जुट गई । दोपहर का खाना समय पर तैयार हो जाना चाहिए था 
माथे पर छलक आई पसीने की बूंद को पोछते हुए उसने नज़रे ऊपर उठाई, दीवार पर ऊपर  एग्जॉस्ट फैन की जगह तो निकाली गई थी,पर वहाँ फैन अभी तक लगा नहीं ।
गर्मी और उमस से उसका हाल बुरा हो रहा था ।
अनु ने सोचा कि, आज ही पतिदेव को याद दिलाएगी की रसोई में एग्जॉस्ट फैन लगवां दें ।
वह काम मे मशरूफ थी कि 
इस बीच कहीं से आवाज आई " अरे सुनती हो कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं अब आओगी भी " !
यह आवाज़ धीमी किन्तु बहुत मधुर थी मानों कोई प्यारी भरी उलाहना दे रहा हो ।
उसने गर्दन घुमा कर देखा तो किचन प्लेटफार्म के एक कोने में चाय की तस्करी और कप रखा हुआ था 
यह आवाज़ वहीं से आ रही थी ।
अनु ने देखा कप की शक्ल पर चिड़चिड़ाहट के भाव उभरे हुए थे ।
 "अगर चाय पीनी ही नहीं थी तो बना कर मुझ में डाली ही क्यों " चाय के कप ने नाराज़ होते हुए अनु से कहा 
उसकी आवाज सुनकर वह मुस्कुरा दी मानों कह रही हो "अरे पीती हूं ना चाय , बस थोड़ा काम  निपटा लूं ।
 और फिर वह अपने काम में मगन हो गई कुछ ही देर बाद रसोई में ऐसा सन्नाटा छाया जैसा किसी ट्रेन के चले जाने के बाद प्लेटफार्म पर होता है सारे यात्रीगण अपने अपने नाश्ते की प्लेट लेकर निकल चुके थे और नाश्ता करके शायद सब सुस्ताने लगे थे ।
पर उसका काम अभी कहा ख़त्म हुआ था ।
अभी तो दोपहर का खाना तैयार करना बाकी था ।
घड़ी देख कर अब पेट भी शिकायत करने लगा , 
" सुनो तुमने अभी तक कुछ नहीं खाया ,अपनी फिक्र तो तुम्हें है नहीं कुछ मेरी ही सुन लो ।
" सबने अपना मनपसंद नाश्ता खाया है ,  मुझे  भी फ्राइड राइस खाना है ,अनु की जीभ ने भी अपना हक जताते हुए फरमाइश की ।
"उफ ओह , फ्राइड राइस बनाने में कितना समय लग जाएगा अरे छोड़ो ।
 चाय को पीने का तरीका क्या है क्या किसी ने सोचा है कभी ,इसी बीच कप ने उलाहना देते हुए कहा ।

 बरामदे में बैठे ससुर जी सुबह-सुबह अखबार के साथ चाय की चुस्कियां लेते हैं और इत्मीनान से चाय खत्म होते-होते अखबार पढ़ लेते हैं ।
सासू मां पूजा के बाद चाय का कप उठाती हैं और फोन पर बेटी के साथ बात करते हुए इत्मीनान से चाय का स्वाद लेती है ।
 पतिदेव को देखो चाय का कप लिए सीधे गार्डन में चले जाते हैं कभी फूल पत्तों को देखते हुए तो कभी नरम दूब पर चलते हुए, दोस्त से बतियाते हुए चाय की चुस्कियां लेते हैं ।
पर अनु तुम्हारे पास चाय पीने का वक्त ही कहाँ है । 
चाय पीते वक्त तुम क्या करती हो , क्या सोचती हो ,पिछली बार इत्मीनान से बैठ कर चाय कब पी थी तुमने ?
चाय के कप की और ज्यादा शिकायतें अनु नहीँ सुन पाई और उकता कर उसने उसे धो कर पलट कर रख दिया ।
दिन भर काम में बीत गया इस लॉकडाउन में सारा टाइम रसोई में ही बीता जा रहा था ।
दिन कब गुज़र गया पता ही नहीँ चला , सारा काम समेट कर अनु  बिस्तर पर गिर पड़ी,थकान के मारे भारी नींद ने उसे  जकड़ लिया कुछ ही देर में सपनों में खो गई तो क्या देखती है कि, अपने विचारों में खोई हुई रसोई में खड़ी है । की नाश्ते में क्या बनाना है खाने में क्या बनाना है कौन क्या खाएगा किसके खाने में नमक कम रखना है,
 किस के खाने मिर्च  डालनी हैं।
 किसी तड़का दाल पसंद है ,तो किस को सादी दाल पसंद है। और इसी बीच अनु  क्या देखती है कि अचानक ही सारे कप तश्तरी सहित अपनी जगह से उठकर हवा में तैरने लगते हैं और उसके चारों तरफ चक्कर लगाने लगते हैं ।
बजाय डरने के अनु मुस्कुराती हैं ,वातावरण में  एक मनमोहक संगीत से बज रहा, जलतरंग की ध्वनि गूंज रही है ।
 हर कप चाहता था कि वह उसमें रखी चाय को इंजॉय करें उसका मजा ले ।
कुछ देर बाद दृश्य बदल जाता है ,अब अनु चाय के कप और तस्तरी की सभा मे मुजरिम की तरह खड़ी हुई थी ।   उससे सवाल किया गया कि वह  इत्मीनान से चाय  क्यों नहीं पीती , यह ना केवल चाय का बल्कि चाय के कप का भी अपमान है ,वह चाय से भरा हुआ कप उपेक्षित सा  किचन प्लेटफार्म के किसी कोने पर पड़ा हुआ होता है । अनु के पास इसका कोई उत्तर नहीं था ।
इत्मीनान से चाय पीना उसके नसीब में नहीं, इसीलिए वह चाय बिन पिये ही रह जाती है ।
या फिर उसने कभी इस बात को कोई महत्व ही नही दिया कि,  चाय इत्मीनान से पीना ज़रूरी है ,चाय पीते हुए खुद के साथ कुछ पल बिताना ज़रूरी है ,शाम की चाय भी कभी पकौड़ी बनाते तो कभी आलू चिप्स तलते हुए ,हमेशा ठंडी हो जाती । 
उसकी समस्या को समझते हुए चाय के कप ने उससे कहा मैं चाहता हूं कि तुम मुझे ही नही स्वयं को भी महत्व दो । 

आराम  से डाइनिंग टेबल पर चाय के कप-तश्तरी रखो और  माथे पर शिकन लाए बिना कप  उठाकर होठों से लगाओ  एक एक घूंट को यूं भरो मानो जीवन का घूंट हो रिलैक्स हो जाओ कुछ मत सोचो कोई प्लानिंग मत करो क्या बनाना है क्या बनेगा यह सब  5 मिनट बाद सोचना । यह पांच मिनट जो तुमने चाय पीने के लिए निकाले हैं इसमें केवल चाय पियो अपने दिमाग को आराम दो अपने हाथों को आराम दो काम करने की नई ऊर्जा बटोर लो।
 तुम मशीन नहीं हो तुम घर की लक्ष्मी हो घर की शोभा हो । स्वयं का सम्मान करो,आराम दो थोड़ा विराम दो, चाय के कप ने उसे बड़े विस्तार से समझाया ।
 सुबह जब वह उठी तो यह सपना उसके दिमाग में तरोताजा था , चाय के कप के साथ 5 मिनट कैसे बिताना है ये वो जान चुकी थी ।
आज सुबह से ही किचन में धीमे आवाज़ में उसका मनपसन्द संगीत बज रहा था ।
आज उसकी चाल में एक मस्त मौला  से अंदाज़ था ,एक आत्मविश्वास था।
आज सभी को नाश्ते की प्लेट थमा कर वह डाइनिंग चेयर पर अपनी चाय का कप लेकर बैठ गई ।
चाय की एक सिप लेकर उसने अपनी आंखों को यूं बंद किया मानो अमृत की घूंट पी लिया हो ।
आज दोपहर में क्या बनने वाला है आलू, परवल लौकी बरबटी ,भिंडी,तड़का दाल बनानी है या कि सादी ,उसने कुछ नहीं सोचा ।
चाय के साथ ये 5 मिनट बहुत कीमती थे ,ये पल बस अनु के थे ।
घर में अभी भी अफरा-तफरी मची किचन में प्लेटफॉर्म जैसा माहौल था कोई दोबारा प्लेट भर कर रहा था,
 तो कोई बना हुआ पसंद ना आने पर मुंह बना रहा था ।
वह लापरवाह नहीं थी बस अब खुद के प्रति थोड़ी सी अवेयरनेस आ गई थी ।
पति ने हल्की सी नाराज़गी से कहा " बड़े आराम से  बैठकर चाय पी रही हो ,यह भी क्या बात हुई 
किचन में देखो क्या हल्ला मचा हुआ है " ।
उसने उसने पति की तरफ मुस्कुरा कर देखा हाथों से इशारा किया कि 5 मिनट रुको अभी चाय खत्म नहीं हुई है । बहुत दिनों बाद अनु के चेहरे पर इत्मीनान देख कर पतिदेव ठिठके, वह खुश थी, सुकून मैं थी,तो उन्होंने ने भी इशारा किया कि, तुम कि तुम आराम से चाय पियो, मैं संभाल लूंगा ।
उनके ऐसा कहने पर अनु ने मुस्कुरा कर चाय के कप की तरफ देखा ,जिसकी नाराज़गी अब दूर हो चुकी थी ।

Written by
Meeta s Thakur

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