एक जंग कोविड के संग

एक जंग कोविड के संग 


हमारी सांसे उखड़ रही थी, सर्दी खाँसी की तो जैसे शरीर मे सुनामी ही आ गई थी । 
सीटी स्कैन की रिपोर्ट ने दिल पर आघात सा कर दिया था , लंग्स इन्फेक्टेड हो चुके थे ,कोरोना अपना सिहांसन सीने पर जमा चुका था ।
फिर दिल ने ही हिम्मत बंधाई की ये भी तो जीवन का हिस्सा है,दुख-तकलीफ -बीमारी में तो ये सब चलता ही रहता है । चिंता,तकलीफ,परेशानी,तनाव के बीच बटी हुई मैं ,बड़े जतन से खुद को समेट पाई ।
इस कोविड को तो सिहांसन से उतारना ही है ,ये सोच कर  पति और मैं निकल पड़े उस प्लस के साइन की खोज में जो हमें ये विश्वास दे सके कि हम एक ऐसे आश्रय स्थल की और रुख कर रहे है,जिनमें कार्य करने वाले लोगो को भगवान का दर्जा दिया जाता है ।
सरकारी अस्पताल जाते मन बैचैन हो रहा था,तभी दादा-भाई ने खबर दी कि फलां फलां हॉस्पिटल में कोविड-बेड की व्यवस्था है ,वहाँ चले जाओ ।
दादा-भाई के रसूख ,प्रभावशाली व्यक्तित्व ,और अच्छे सम्बन्धो की वजह से हमें उस हॉस्पिटल में जगह भी मिल गई,
उनके बताए पते पर पहुँचे हॉस्पिटल का गेट देखते ही आंखे नम हो गई।
कितना प्यारा नाम था " नंदलाल हॉस्पिटल "
मुझे लगा मानो हम गोकुल में पहुँच गए हो, लगा कि ईश्वर ने सही जगह भेज दिया हमें । रिसेप्शन पर कागज़ी करवाई करने के बाद हमनें अंदर प्रवेश किया तो श्री कान्हा का सुंदर मन्दिर देख कर मन आनन्द से भर गया ।
कान्हा की बंसी कानों में गूँजने लगी ,सिस्टर ने बताया कि डॉक्टर साहब बहुत बड़े भक्त है कान्हा जी के ,हॉस्पिटल के टॉप फ्लोर पर बहुत बड़ा मन्दिर बना रहे है ।
ये सुन कर मेरा मन श्रद्धा और विश्वास से भर गया ।
 डॉक्टर साहब खुद अटेंड करने आये 2 घण्टे के भीतर प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट भी कर दिया गया हमें ।
पति और मैं दोनों एक दूसरे की आँखों मे झाँकते और ढाँढस बंधाते, रह रह कर दादा-भाई के कॉल भी हिम्मत बंधाते रहते ।
प्राइवेट वार्ड में प्रवेश करते ही, मेरे दिमाग में जो पहले विचार कौंधा वो था "पैसे कितने खर्च होंगे ,पैसा जीवन से बढ़ कर तो नहीं, परन्तु उतना पास हो तो सही ।
मैंने कोविड हेल्प लाइन कॉल करके गवर्नमेंट के अनुसार कोविड इलाज के शुल्क की राशि की जानकारी हासिल की , तब जा कर मन को राहत मिली और दिमाग मे आया गणित का भारी सवाल हल हो पाया कि ,जो भी बिल आएगा वो हम भर सकेंगें ।
धीरे धीरे सारी औपचारिकताएँ पूरी हुई, रात करीब 11 बजे हम बिस्तर पर लेटे हुए थे ऑक्सीजन मास्क लग चुके थे ,ग्लूकोस ड्रिप चढ़ रहे थे ।
मैंने सुकून की सांस ली और अपनी आंखें बंद कर ली,तभी एक आवाज़ आई " भाई-साहब आप पेमेंट कर दीजिए ।
मैं सहज थी, जानती थी जो भी लगेगा हम पेमेंट कर देंगे ।
"जी डॉक्टर साहब अभी दस-पंद्रह हजार जमा कर देता हूँ, फिर बाद में और जमा करता रहूंगा ।
यह सुन कर डॉक्टर साहब के चेहरे पर आई एक तिरछी सी मुस्कान ने मुझे फिर बेचैन कर दिया ,वे गला साफ करते हुए मज़बूत आवाज़ में बोले "देखिए साहब, यहाँ डेली वाला नही पैकज सिस्टम चलता है, एक कोविड पेशेंट का पैकेज 2.5 लाख का है ।
आप लोग 2 है इसीलिए 7 दिन के ट्रीटमेंट का पैकेज 5 लाख होगा , कुछ ज़रूरी इंजेक्शन जो लगने होते है उनके चार्जेस अलग से लगेंगे ।
उनका इतना कहना था कि मेरे और मेरे पति की ह्रदय धरा पर तो मानों उल्कापिंड गिर पड़े, हम अवाक से डॉक्टर को देखते रहे, हकलाते हुए मैंने पूछा कि, इतना खर्चा क्यों ?
अपनी आवाज में वजन का पुट बढ़ाते हुए डॉक्टर साहब ने कहा देखिए मैडम " मेरे पास अति अनुभवी  स्टाफ है ,मैं आपको ऑक्सीजन सिलेंडर ,वेंटिलेटर और इस तरह की कई सुविधाएं दे रहा हूं ,यह सारी सुविधाएं पैकेज में ही आएंगी ।
मैंने हिम्मत करके आगे पूछा कि ,हमारी हालत इतनी खराब नहीं है कि हमें वेंटिलेटर की जरूरत पड़े ,ऑक्सीजन सिलेंडर भी शायद कुछ ही दिन हमें लगे तब  भी क्या हमें ढाई लाख रुपए देने पड़ेंगे ।
चाहे आप को इनकी जरूरत पड़े या ना पड़े एक पैकेज का जो चार्ज है वह तो देना ही होगा इसके अलावा कुछ इंजेक्शन जो अलग से लगेंगे उनके चार्जेस अलग से देने होंगे,"
 ऐसा कहकर डॉक्टर साहब तो चल दिए मैं और मेरे पति अब एक और जंग में शामिल हो चुके थे अभी तक हम शरीर के अंदर के कोरोना से लड़ रहे थे अब हमें लालच और नाइंसाफी के कोरोना से भी जंग जीतनी थी। पर कैसे .?
कहाँ रही सरकार द्वारा जारी की गई गाइडलाइन्स .?
मेरे पति मेरी परेशानी भांप गए, उन्होंने मुझे हिम्मत बंधाई की, सब कुछ ठीक हो जाएगा हमारे पास मेडिकल पालिसी है,किंतु इस हॉस्पिटल में कारगर नही है यहाँ तो तुरंत में तो पैसा देना ही होगा ।
बस फिर क्या था,एक कोविड पेशेंट जिसे आराम करना चाहिए था, वो देर रात फ़ोन पर पैसो के इंतेज़ाम और समय पर उसकी वापसी के वादे के हेर फेर में उलझा रहा ।
उखड़ती सांसो से सबको पूरा हाल बताता और पैसों के इंतजाम की बात करते ही उनका चेहरा कुमल्हा जाता ।
खैर हम दोनों के परिवारों ने हमें इस बात का आश्वासन दिया कि पैसे का इंतजाम हो जाएगा बस कुछ वक्त की जरूरत होगी ।
हमने चैन की सांस ली पति ने मुझे समझाया जिंदा रहेंगे तो और कमा लेंगे परेशान मत हो ।
 उन्हें इस बात का आश्वासन देकर कि मैं ठीक हूं, मैं करवट बदल कर लेट गई मेरी आंखें बड़ी सी खिड़की से आकाश को तक रही थी "क्या पैसों की बारिश होगी , "क्या पैसे आसमान से गिरेंगे ,या सामने लगे नीम के पेड़ पर नोट उग आएंगे ।
क्या हम इतने बीमार है क्या इलाज इतना महंगा है कि मेरी साल भर की कमाई भी 7 दिन का खर्चा नहीं उठा पाएगी । मेरा मन डूब रहा था ।
अभी तक जितनी पोसिटीवीटी अपने अंदर समेट कर रखी थी धीरे धीरे सब रीत रहा था ।
स्टाफ अपने काम पर लग गया ,मैंने 2.5 लाख के कमरे का मुआयना किया  4 बेड वाला एक कमरा जिसे प्राइवेट वार्ड का नाम दे दिया गया था के बीचोंबीच एक पंखा था , पीठ पीछे दीवार पर ए. सी . लगा हुआ था ,जिसे ज़रा भी ऑन करती तो पति को खाँसी आने लगती । 
पंखा मुझसे बहुत दूर था ।मैं बुरी तरह से पसीने से तरतीब थी ।
स्टाफ  वार्ड में आये , पी-पी किट पहना हुआ था , किन्तु सेनेटाइजर का इस्तेमाल नगण्य था ।
उनके काम करने के तरीके से वे अनुभवी कम और
कम उम्र के नोसिखिये ज्यादा लग रहे थे ।
कोविड बेड के बीच में किसी प्रकार का कोई पर्दा नहीँ था । करीब 2 घण्टे तक गुहार लगाने के बाद तकिया,साइड स्टूल और चादर के दर्शन हुए, मुझे अभी असली आघात पहुचना तो बाकी ही था, मुझे वाशरूम जाने की आवश्यकता महसूस हुई,तो मैंने चारो तरफ नज़र दौड़ाई,किन्तु कहीं कोई वाशरूम नज़र नहीँ आया । स्टाफ ने बताया कि आपको या तो आई-सी-यू वार्ड ,जिसमें की करीब 10 क्रिटिकल मरीज़ भर्ती थे जो लगभग बुजुर्ग ही थे   के वाशरूम को यूज़ करना होगा,अथवा बाहर कॉरिडोर पर लिफ्ट के किनारे बना सार्वजनिक वाशरूम ।
मेरा सर चकरा रहा था,ये अस्पताल है या इन्फेक्शन का अड्डा ,हमें कोविड है,किन्तु वाशरूम इस्तेमाल करने के लिए हमें तो वार्ड के बीच से निकलना होगा,अगर किसी बुजुर्ग को हमसे इन्फेक्शन हो गया तो ।
मेरा मन घिन्न से भर गया ,किसी तरह वाशरूम हो कर आई।
कुछ देर बाद ऑक्सीजन मास्क मेरे चेहरे पर लगा हुआ था लेकिन मुझे ऑक्सीजन की सख्त कमी लग रही थी ।
मुझे हर दरो-दीवार पर 2.5 लाख की परछाईया दिखाई देने लगी,मैंने घबरा कर आंखे बंद कर ली ।
रात में हमें कोई विशेषज्ञ डॉक्टर देखने नही आया ।
सुबह करीब 6 बजे हमसे कहा गया कि फ्रेश हो जाइए ताकि नेबुलाइजर दिया जा सके ।व नाश्ता कर लीजिए।
आगे खबर ये थी कि अस्पताल प्रबंधन के पास मरीजों के खाने की कोई व्यवस्था नहीं थी,न ही कोई ऐसा कर्मचारी था जो कि खाने की व्यवस्था कर दे ।
मेरे पति उठे और उन्होंने कहा, मैं पास वाली शॉप से कुछ खाने को ले आता हूँ, फिर मेरी आँखों मे उभरे प्रश्न को भांपते हुए उन्होंने एन-95 मास्क और फेस शील्ड लगाई और इस वादे के साथ कि वे दूरी रखेंगे वे चले गए ।
उनके जाते ही ,एक कर्मचारी आया जिसने मुझे कहा कि अभी की अभी आप काउंटर पर रु पचास हज़ार जमा करवा दो  । मैंने उन्होंने आश्वाशन दिया कि कुछ ही देर में जमा करते थे । आश्चर्य की बात थी कि मेरे पति एक कोविड  पेशेंट थे और उन्हें किसी ने बाहर जाने से नही रोका।
खैर कुछ देर बाद वे चाय ब्रेड लाये जिसे खा  कर हम आगामी दवाइयों के लिए तैयार हो गए ।
किन्तु 11 बजे तक हमें कोई दवाई नही दी गई क्योकि हमने काउंटर पर रु 50 हज़ार नही जमा किये थे ।
तब मेरे पति ने दादा-भाई और अपने कुछ मित्रों से सलाह कर डॉक्टर साहब से बात की ,कि आप हमें डिस्चार्ज कर देंवे क्योकि हम इतना खर्चा वहन नहीँ कर सकते । तब हमसे कंसर्न लेटर भरवाया गया व रु 61 हज़ार भरने को कहा गया ।
मेरे पति ने शांति से पूछा सर "ऐसा कोई खास मेडिकेशन हुआ नहीं, फिर 12 घण्टे का इतना रुपया कैसे ,कृपया जो जायज़ पैसा बनता है,वे लीजिये और हमें जाने दें ताकि हम किसी और अस्पताल में भर्ती हो सकें ।
किन्तु डॉक्टर साहब नही माने "मेरे साथ ज्यादा बहस मत करो,कह कर वे चले गए ।
फिर जब उन पर दवाब बना तो मजबूरन वे बोले ठीक है कितना जमा करेंगे आप, पति बोले रु 10 हज़ार पहले कर चुका हूं, रु 10 हज़ार अभी यानी 1 दिन का कुल 20 हज़ार ।
खैर बडी हिलहुज्जत के साथ बात तय हुई ,और हमें डिस्चार्ज कर दिया गया, किंतु हमारी ट्रीटमेंट फ़ाइल हमें नही दी गई ।
अस्पताल की सीढ़ियां उतरते हुए मेरा मन ज़ार ज़ार रो रहा था । क्या होगा अब ,अगर किसी और अस्पताल में जगह नही मिली तो,इस चिलचिलाती धूप और बीमार अधमरी काया को ले कर किस तरफ जाएं ,मेरी आँखें बार बार भर आ रही थी ।
हॉस्पिटल में बने कान्हा के जिस मन्दिर को देख कर मैं खुशी और आशा से भर गई थी,वही कान्हा अब मुझे उदास और कैद दिखाई दे रहे थे, वो मानों  कह रहे हो,तुम्हारी आशा और विश्वास नहीँ टूटा, टूटा है मेरा ह्रदय,टूटी है मेरी आत्मा ।
मैं कान्हा की सफेद रंग की मूर्ति जो कि स्याह होती जा रही थी को देख कर फफक फफक कर रो पड़ी ।
कान्हा का नाम तो धीर देता है,मन को उल्लास और ऊर्जा से भर देता है ।पर अब क्या कहूं यहाँ तो ईश्वर खुद क़ैद में है, गिद्धों के बीच में ।
खैर इस आशा से हमने अपने कदम आगे बढ़ाए की उम्मीद पर तो दुनिया कायम है,क्या पता कहीं कोई ऐसा पैकेज़ मिल जाये जिसमे आशा हो ,जीवन हो, उम्मीद हो,खुशी हो ,चंगाई हो और हाँ उतने ही पैसे देने पड़े,जितने की जतन से हम दें पाए ।
दूर कहीं से कान्हा की बंसी की आवाज़ सुनाई दे रही थी,मानों कह रही हो,थोड़ा तलाशों ,सैकड़ो हाथ उठेंगे मदद के लिए,क्योंकि कुछ लोग मुझे हॉस्पिटल में कैद नही करते,बल्कि अपने दिल में रखते है । और जिनके दिल में मैं हूं ,वो करेंगे ही मानवता के काम ।
 ये ख्याल आते ही, मेरा मन आशा से भर गया, मुझे उम्मीद थी कि ये दुनिया इतनी बुरी भी नहीं ।
संवेदनाएं अभी ज़िंदा है....ज़िन्दगी हारेगी नही ।
जल्द ही अपनी जीत का एलान अपने लोगों के साथ करूँगी ।

मीता एस ठाकुर 
सतना

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