मायके की मिठाई , Mayke ki mithai

 मायके की मिठाई


मायका शब्द कितना छोटा है जाने किसने इजाद किया है  शब्द छोटा ज़रूर  है  लेकिन इसके मायने बहुत बड़े हैं ।
वास्तव में एक लड़की स्वयं भी "मायके" के मायने तब तक नहीं जान पाती जब तक उसका विवाह नहीं हो जाता  यानी कि जब तक वो पराई नहीं हो जाती
और पराई होने की यह पीर  ही उसे कभी मां-बाप से पराया 

नहीं होने  देती ।

मायका तो लड़की के दिल का एक टुकड़ा होता है जो कभी उससे अलग नहीं हो सकता ।
पीहर का द्वार ,पीहर की हवा ,पीहर की खुशबू उसके अस्तित्व का एक हिस्सा होती है ।
वह आंगन ,जहां खेली कूदी और बड़ी हुई ,वह आंगन जहां से वह विदा हुई ,उस आंगन में उसकी आत्मा बसती है । पिता की लाडली और मां की सहेली, भाई की दोस्त और छोटी बहन की मां, कितने रिश्ते होते हैं मायके के ।
जब चाहूं फोन पर बातें कर सकती हूँ । पर सच कहूं जो आनंद उनकी चिट्ठियों में आता था वह फोन पर नहीं आता जो सहज उपलब्ध होता है वह आनंद नहीं दे पाता ।
आज भी मां-पापा की लिखी चिट्ठियां मेरे पास मौजूद है । जब उनकी बहुत याद आती है तो उनकी चिट्टियां पढ़ती हूं ,
उस अन्तर्देसी में मानो उनका चेहरा उतर आता है ,हर शब्द और वाक्य के साथ चेहरे के बदलते भाव मुझे दिखाई देते हैं ,चिट्टियां जैसे जिंदा हो जाती हैं, औऱ चिट्ठियों की खुशबू से मेरा मन तरबतर हो जाता है ।
आज स्कूल से लौटी तो शरीर टूटा रहा  था ।
ठंड में तो यह शहर अलास्का बना हुआ है, बस बर्फ गिरने की कमी है,इतनी गलन है कि हाथ हाथ को महसूस नहीं हो रहा है।
घर के भीतर आते पता चला कि कोई पार्सल आया है इंडियन पोस्टल से, मैं अंदाजा नहीं लगा पाई कि कहां से आया होगा बहुत थकी थी इसलिए सीधे आराम करने चली गई ।
शाम को जब नींद खुली तो जाने क्यों मां पापा की यादों ने मुझे घेर लिया, मुझे लगा कि बिन बादल बरसात कैसे हो रही है ।
इस ठंड ने निकम्मा बना दिया था काम की गति धीमी हो गई थी और ठंड  तेज ।
किसी तरह काम खत्म हुआ तो देखा  10:00 बज रहे हैं ।
मन मे कहा ,"चलो भाई, दूसरे दिन की तैयारी करें और सोने चले खाना खाने का आज कोई मूड था नहीं था ।
गीत सुनने का बहुत शौक है सोचा कुछ पुराने गीत सुने जाए फिर चलते हैं।
मैं हीटर के सामने चेयर पर पैर जमा कर बैठ गई और हवा में गूंजती स्वर लहरी के साथ मन पीहर की तरफ उड़ चला
"माई री मैं कासे कहूं पीर अपने जिया की ,माई री" ।
कोई दुख नहीं था मुझे सब तो बढ़िया था पति ,बच्चा मेरा अपना संसार फिर क्यों मन कलपता  है क्यों याद आती है माँ पापा की ।
अपनी सोच के सागर में डूबी हुई थी तभी मेरी नाक ने एक जानी पहचानी चिर परिचित खुशबू को महसूस किया ,
यह तो बेसन के लड्डू की खुशबू है और तिल के भी लड्डू है ।

मन में एक लहर सी उठी और मैं समझ गई की वह पार्सल जो दोपहर में आया था  उसमें क्या था और वह कहाँ से आया था ।
फिर क्या था किसी चपल बालिका की तरह मैंने उस पार्सल  को खोजा और बिना एक पल भी गवांए उसे खोला
तो मेरी खुशी का ठिकाना नही रहा।
गत्ते के कार्टून के अंदर प्लास्टिक के 4 डब्बे थे, उन डब्बों में सलोनी,खुरमी,बेसन के लड्डू और तिल के लड्डू भरे हुए थे ।


मेरा मन अंदर तक भीग गया,इस पिछले 2 साल से मां पापा से नहीँ मिल पाई, एक साल व्यस्तता में कट गया,दूसरा साल ये कोरोना ले उड़ा ।
कितना मन थे माँ-पापा से मिलने का ।
मेरी आँखें भर भर आ रही थी,भरी आंखों से मैंने लड्डू का डब्बा खोला और लड्डू को जैसे ही मुँह में रखा तो ऐसा  लगा मानो, मां ने मुझे अपने अंक में समेट लिया हो ।
सलोनी का टुकड़ा मुँह में रखा तो ऐसा लगा जैसे कि पापा मानों पापा गले लग गई हूँ ।
क्या कोई मानेगा की मैं रोते हुए मिठाइयां खा रही थी ।
मन जाने कितनी यादों से घिर गया । 
वह सारे पल याद आ गए जब घर में मिठाइयां बनती थी होली दीपावली क्रिसमस राखी में जब मम्मी पकवान और मिठाइयां बनाकर राशन की  अलमारी में रख  ताला लगा दिया करती थी ।
हम भाई-बहन चोरी चुपके खुरमी, सलोनी,रोज़-कुकी,गुजिया और कुकीज़ पर हाथ साफ किया करते थे ।
वो राशन की अलमारी ,जाने कितनी चोरियों की साक्षी रही है ।
मम्मी सब जानती थी लेकिन फिर भी अनजान बनी रहती थी ।

हमारे बचपन की जाने कितनी यादें और कहानियां इन मिठाइयों के इर्द-गिर्द बुनी हुई है बुनी हुई है है ।
देर रात तक जब मम्मी मिठाइयां और पकवान बनाती तो हम भाई -बहन उनके चारों तरफ रहते ,कभी मदद करते तो कभी कुछ पाने की मनसा में आसपास बने रहते ।

नमकीन बनाने का काम पापा के सर पर होता था, क्योंकि वह नमकीन बनाने में एक्सपर्ट थे और पापा को मनाना मेरे लिए कोई बड़ा काम नहीं होता था ।
मेरे भाई बहन  मुझे चिढ़ाते थे कि ,तुम पापा की चमची हो, तुम चमचागिरी करती हो ,मैं उनकी बात सुन कर इतराती ।

आज घर से आई मिठाइयों ने मुझे फिर अपने बचपन की ओर धकेल दिया।

माँ के साथ बैठ कर नन्हे नन्हे हाथों से जाने कितनी गुज़िया बनाई और बिगाड़ी है, तब बिगड़ी गुज़िया देख कर भी माँ कहती "ये दुनिया की सबसे स्वादिष्ट और सुंदर गुज़िया है "

ईन मिठाइयों ने न केवल मेरी ज़िब्हा पर ,बल्कि मेरे पूरे मन और जीवन में मिठास घोल दी थी ।
अभी तक तो मैं खाना भी नहीं खा रही थी और जाने कैसे मुझे इतनी भूख लग आई ।
भावुक होकर मैंने घर फोन लगाया पर यह सोच कर कि सब सो गए होंगे ,बेल जाते ही मैंने फोन काट दिया ।
दूसरे ही मिनट ,प्रत्युत्तर में फोन की घंटी बजी, मम्मी का फोन था ।
मैंने जैसे ही फोन उठाया तो उधर से जो पहला वाक्य था "क्यों मिठाई खा रही हो ना,मैं समझ गई थी तुम ही होगी "।
फिर आगे मम्मी जाने क्या क्या कहती रही "कैसी हो ,सब हैं, कैसा चल रहा है ,घर में पति और बच्चे कैसे हैं "।
पर मैं तो जैसे किसी और दुनिया ही में थ।
मैं तो जैसे अपने मायके के आंगन में ही खड़ी थी बाहें पसारे मां के अंक में समा जाना चाहती हूं आंखों से आंसू गिर रहे थे और मन तृप्त था ।
बात केवल मिठाई की नहीं थी मन के तारों की थी जो मायके के साथ जुड़े हुए थे मां और पापा के साथ जुड़े हुए थे । और मेरे मन के तार झंकृत हो चुके थे ।
सचमुच मायके की मिठाई का स्वाद और ज़ायका कहीं और मिल ही नहीँ सकता ।



By 

Mrs. Hakuna Matata












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