"नानी, मैं तो मर.... कर देख रही थी "।

मर कर देख रही थी

बात मेरे बचपन की है मैं करीब 4-5 साल की थी गर्मी की छुट्टिया बिताने नानी के घर गई हुई थी । नानी सिवनी जिले के कान्हीवाड़ा गाॅव में रहती थी ।
 वहाॅ पर आम ,इमली ,अमरुद की कोई कमी नहीं थी । 
मैं दिन भर खेलती,कभी इस घर तो कभी उस घर ।
नानी को दोपहर में सोने की आदत थी,और मुझे तो नींद आती नहीं थी ।
अत: वो हर दोपहर मुझे कोई न कोई खिलौना या ऐसा ही कुछ दे कर व्यस्त रखती ,ताकि मैं कहीं बाहर न जाऊं और वो भी आराम कर सकें ।
एक दिन दोपहर में नानी ने मुझे खेलने के लिये एक छोटी सी टोकरी दी जिसमें बहुत सारे इमली के बीज रखे हुये थे ।
नानी ने मुझे हिदायत दी की इन इमली के बीज से खेलना पर नाक या मुहॅ में नहीं डालना ,तो मैंने पूछा 
‘क्यो मुहॅ में या नाक में डालने से क्या होगा ’ ।
नानी बोली "एसा करने से मर जाते है तुम एसा नहीं करना ’  कह कर वह सोने के लिये चली गई ।

थोडी देर तक तो मैं उन चमकीले खूबसूरत बीजों से खेलती रही , पर जाने कब और कैसे मैंने एक मोटा सा बीज नाक में डाल लिया ।
कुछ देर बाद बीज निकालने की कोशिश की जब नहीं निकला तो ,मैं उसे निकलने की कोशिश में सो गई ।
 शाम को जब मैं सो कर उठी तो  मेरी नाक बुरी तरह से फूल कर कुप्पा हो गई थी ।
शाम को आंख मलते हुए मैं नानी के पास पहुँची ,और डरते हुए अपनी फूली नाक दिखाई ।
नानी ये देख कर वह बहुत घबरा गई ।
दौड़ी-दौड़ी पड़ोसी के पास पहुँची, और उनकी सहायता से मुझे टाँगे पर बैठा कर सरकारी अस्पताल ले गई ।
पर डॉक्टर साहब तो थे नहीं, नानी ने अपना माथा पीट लिया।
"हे प्रभु ,  क्या करूँ, दामाद और बेटी को पता चलेगा तो  कितना घबरा जाएंगे ,जल्दी से बिटिया ठीक हो जाये " ।

तभी गावँ के सरपंच जी की खबर मिली कि उन्होंने नानी और मुझको घर बुलाया है, वो हमारी मदद कर सकते है ।
सुनते ही नानी मुझे ले कर सरपंच जी के यहाँ पहुँची ।
उन्होंने बड़ी बारीकी से मेरी नाक का मुआयना किया और अपनी पत्नी को बुला कर कहा कि ,"जाओ ज़रा नसवार ले आओ "।
नसवार मंगा कर उन्होंने मुझे नसवार सूंघने को कहा ,
पहली दूसरी बार सूंघने में मेरा सर ही घूम गया,किन्तु मुझे छींक नहीं आई।
नानी की घबराहट और बौखलाहट बड़ती जा रही थी ।
तीसरी बार नसवार सूंघने पर मुझे बड़ी ज़ोरदार छींक आई और प्रेशर के कारण नाक में फंसा बीज नाक से निकल कर दूर जा गिरा ।
मैं थक कर बेहाल हो चुकी थी,नानी ने मुझे सीने से लगा लिया,और सरपंच जी को हज़ारों बार शुक्रिया कहा ।
सरपंच जी ने आदेश दिया कि मेरे लिए गरमागरम दूध लाया जाए , मैंने सिप-सिप करके दूध पिया ।
जब सामान्य हुई तो नानी ने थोड़े प्यार और गुस्से से पूछा कि,
बिटिया तुमने ऐसा क्यों किया, मैंने तुम्हें मना किया था न ऐसा करने से ।
 तब मैंने बड़ी मासूमियत से कहा ‘ आप ही ने तो कहा था की इस को खाने से या नाक में डालने से मर जाते है तो मैं तो मर के देख रही थी ’
 मेरा जवाब सुन कर नानी ने सर पिट लिया ।
और बाकी लोग हंस हंस कर दोहरे हो गए ।
बाद में नानी और सरपंच जी दोनों ने मुझे समझाया कि मैं भविष्य में कभी ऐसा न करूं ।
और मुझे भी ये सीख मिली कि बड़ो का कहा मानना चाहिए ।


By
Madam Hakuna Matata

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