पापा दूरदर्शन और मैं.....
पापा दूरदर्शन और मैं
यादें बहुत कमबख्त होती हैं ना समय देखती हैं ना परिस्तिथि कभी भी आकर आपको घेर लेती हैं ।
मेरे यादों के पिटारे में अगर सबसे ज्यादा किसी शख्स का नाम आता है तो वह है मेरे पापा ।
पापा और रेडियो ,पापा और दूरदर्शन ,पापा और मनी ऑर्डर ,पापा और पिकनिक और जाने क्या-क्या
उन्हीं में से एक याद आज आपके साथ शेयर कर रही हूं "पापा और दूरदर्शन और मैं " ..।
आज जबकि टीवी पर चैनलों की भरमार है फिर भी
वह मजा और आनंद नहीं ,जो दूरदर्शन के चैनल में था हफ्ते में एक दिन आने वाली पिक्चर के इंतजार का मजा ही कुछ और था पिक्चर के बीच आने वाले विज्ञापन का भी एक अलग आनंद था ।
रविवार के दिन तो पापा क्लिनिक चले जाया करते थे
हम भाई-बहन में के संडे के संडे के सारे प्रोग्राम देखा करते थे,
जैसे सुबह की शुरुवात रंगोली से होती थी , फिर जंगल-बुक, चन्द्रकान्ता डोनाल्ड-डक ,टॉम एंड जेरी,राजा विक्रमादित्य विक्रम बेताल और भी बहुत सारे बच्चों के प्रोग्राम जिनकी यादें दिल से जाती ही नहीं ही नहीं ।
खैर दूरदर्शन की कहानी के बारे में फिर कभी बात करेंगे आज तो बात हो रही है पापा दूरदर्शन और मेरी ।
घर में एक बड़ी आराम चेयर थी,जो कि बांस बनी हुई थी उस पर पापा ही बैठा करते थे, पापा और मैं ।
मम्मी भी साथ होती थी हम अक्सर फिल्म देखा करते थे मैंने पापा के साथ कई फिल्में देखी हैं जैसे, गूंज उठी शहनाई ,शहनाई ,शम्मी कपूर की अधिकतर फिल्में मधुमति , मिस इंडिया, गीत गाया पत्थरों ने, मुग़ल-ए-आज़म ,दोस्ती , महमूद की फिल्में, झुमरू,चलती का नाम गाड़ी, बैजू-बावरा आदि ।
पापा के दो फेवरेट हीरो है किशोर कुमार और शम्मी कपूर उनकी फिल्मे वे कभी नहीं छोड़ा करते थे और
मैं तो थी ही शुरू से पापा की चेली जहां पापा वहां मैं ।
हम बहुत मजे से मूवी देखा करते थे पापा अपने समय के बहुत से किस्से सुनाया करते थे और जब भी विज्ञापन आता था उठके चाय बनाते थे आमलेट बना कर देते थे ।
पुरानी फिल्मों से प्यार मुझे पापा के कारण ही हुआ उनके साथ देखी गई हर फिल्म मेरे दिमाग में छप सी गई है ,आज भी किशोर कुमार और शम्मी कपूर मेरे फेवरेट है ,जैसे कि पापा के हैं।
मधुबाला ,मीना कुमारी ,पदमिनी, नूतन, वैजयंती माला जैसी खूबसूरती मुझे कहीं दिखाई नहीं नहीं देती ।
मुझे अच्छी तरह याद है हॉल की लाइट बंद हुआ करती थी किसी भी तरह का कोई शोर नहीं होता था आराम चेयर पर पापा बैठेते थे दीवान पर मम्मी ,और पापा की गोद में मैं
देर रात की फिल्में , आर्ट फिल्मे, हम देखा करते थे ।
मुझे फिल्में देखने से ज्यादा पापा का साथ पसंद था ।समय बीत जाता है लेकिन यादें आप को जोड़ें रखती हैं उस समय के साथ ।
पापा घर में ही सिनेमा हॉल का मजा दिया करते थे भूनी मूंगफली कागज़ में रोल कर के दिया करते थे, भुट्टे भूना करते, गरमा गरम चाय बना लिया करते थे ,पापा शुरू से ही खाना बनाने में या किसी भी तरह का डिश बनाने में बहुत फास्ट है, इसीलिए संडे की पिक्चर देखना है या शुक्रवार को देर रात आने वाली पिक्चर देखना मेरे लिए एक उत्सव की तरह होता था ।
आज उन बातों को बहुत वक्त ।
आज घर में 42 इंच का बहुत बड़ा टीवी है ,एचडी कनेक्शन है रिमोट में ना जाने कितने चैनल है आप बदलते रहिए , बदलते रहते ही आपका दिन कट जाएगा ।
पर मन को बांध के रख सके ऐसा कोई भी कंटेंट नहीं है ऐसा कोई भी नग़मा नहीं है ।
पापा टीवी देखते तो जरूर है पर उनका मन नहीं लगता पर बड़े शौक से देखते हैं "तारक मेहता का उल्टा चश्मा"
उन्हें उसमें ही मजा आता है लेकिन बाकी कोई प्रोग्राम बहुत अच्छे से नहीं देख पाते ।
जब रामायण का टेलीकास्ट होता है ,तब जरूर देखते हैं महाभारत भी जरूर देखते हैं ।
दूरदर्शन की वह यादें पता नहीं कितने जीवनों में रस घोल देती हैं ।
पापा अक्सर कहते हैं कुछ समझ में नहीं आता कितने चैनल है ,उसमें एक भी मन की फिल्म नहीं दिखाई देती है या, तो इतने विज्ञापन के देखने से मन ही हट जाता है ।
मुझे अच्छी तरह याद है हॉल की लाइट बंद हुआ करती थी किसी भी तरह का कोई शोर नहीं होता था आराम चेयर पर पापा बैठेते थे दीवान पर मम्मी ,और पापा की गोद में मैं
देर रात की फिल्में , आर्ट फिल्मे, हम देखा करते थे ।
मुझे फिल्में देखने से ज्यादा पापा का साथ पसंद था ।समय बीत जाता है लेकिन यादें आप को जोड़ें रखती हैं उस समय के साथ ।
पापा घर में ही सिनेमा हॉल का मजा दिया करते थे भूनी मूंगफली कागज़ में रोल कर के दिया करते थे, भुट्टे भूना करते, गरमा गरम चाय बना लिया करते थे ,पापा शुरू से ही खाना बनाने में या किसी भी तरह का डिश बनाने में बहुत फास्ट है, इसीलिए संडे की पिक्चर देखना है या शुक्रवार को देर रात आने वाली पिक्चर देखना मेरे लिए एक उत्सव की तरह होता था ।
आज उन बातों को बहुत वक्त ।
आज घर में 42 इंच का बहुत बड़ा टीवी है ,एचडी कनेक्शन है रिमोट में ना जाने कितने चैनल है आप बदलते रहिए , बदलते रहते ही आपका दिन कट जाएगा ।
पर मन को बांध के रख सके ऐसा कोई भी कंटेंट नहीं है ऐसा कोई भी नग़मा नहीं है ।
पापा टीवी देखते तो जरूर है पर उनका मन नहीं लगता पर बड़े शौक से देखते हैं "तारक मेहता का उल्टा चश्मा"
उन्हें उसमें ही मजा आता है लेकिन बाकी कोई प्रोग्राम बहुत अच्छे से नहीं देख पाते ।
जब रामायण का टेलीकास्ट होता है ,तब जरूर देखते हैं महाभारत भी जरूर देखते हैं ।
दूरदर्शन की वह यादें पता नहीं कितने जीवनों में रस घोल देती हैं ।
पापा अक्सर कहते हैं कुछ समझ में नहीं आता कितने चैनल है ,उसमें एक भी मन की फिल्म नहीं दिखाई देती है या, तो इतने विज्ञापन के देखने से मन ही हट जाता है ।
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