पापा और मनीऑर्डर , Papa aur Moneyorder

 पापा और मनीऑर्डर


दुनिया कितनी छोटी होती जा रही है,
माउस के एक क्लिक पर दुनिया का कोई भी हिस्सा नुमाया हो जाता है ।
महीनों की दूरी ,पलों में सिमट गई है,  एक कहावत है "दुनिया मेरी जेब में" आज के समय में ये बिल्कुल सही है !
आज हमारे मोबाइल फ़ोन में सारी दुनिया है,हमारे बैंक एकाउंट,ई मेल ,फ़ोटो,वीडियो,पैसा ,कांटेक्ट,और न जाने क्या क्या...!!
आज का युग  नैनो युग है,जहाँ हर चीज छोटी होती जा रही है,जीने के तरीके सरल हो रहे है,नई तकनीके इज़ाद हो रही है, और बहुत कुछ सिमटता जा रहा है, सब कुछ "E" हो गया है ,-e- commerce, e-shopping , e- business 
 बहुत तेजी से बदल रहा है समय पर शुक्र है कि,अब तक भावनाएं नही बदली है, अभी भी e-emotion का इज़ाद नही हुआ है..! दुनिया नई बातों को नए तरीकों को गले लगा रही है ,और पापा
आज भी पुरानी चीजो से चिपके बैठे है, रेडियो सुनते है,पुराने टेप रिकॉर्डर में कैसेट चलाते है,जो चलती कम है और फँसती ज्यादा है...
मिट्टी की हांडी में दाल पकाना, घर के पीछे मकई उगाना,  मक्की की रोटी और  टमाटर की चटनी बनाना , अलीबाबा और 40 चोर की कहानी ऐसी  सुनाना मानों आंखों के सामने कोई पिक्चर चल रही हो ।
 रफी और मुकेश के पुराने नगमे में तो जैसे खो जाते हैं, दुनिया कहां से कहां पहुंच रही है ,और पापा धीरे-धीरे और पीछे जाते जा रहे हैं ।

वो बीते  समय को बहुत miss करते हैं जैसे कोई बच्चा अपने प्रिय खिलौने को मिस करता है जो कि टूट गया है और दोबारा बन नहीं सकता !
नए जमाने की सारी बातें समझते जरूर है पर अपनाते नहीं है ! चिट्ठियों को आज भी सहेज कर रखते हैं ,जो सालों पहले लिखी गई थी ,तोहफों की ज़िल्द तक सम्भाल कर रखते है ।
अब कौन लिखता है चिट्ठी भला । पुरानी चिट्टियां भी तो किसी sd-card जैसी है,किसी pdf फ़ाइल जैसी है,सारी भावनाओं को समेटे हुए,संभाले हुए ।
 ख़ैर  मैं बस यह बताना चाहती हूं कि पापा और
 मनी-ऑर्डर के बीच में क्या संबंध है आज के समय में जब किसी को पैसे भेजना  एक पल का खेल होता है वहाँ  भी मैं क्यों पापा को मनीआर्डर भेजती हूँ ।
आज व्हाट्सएप्प और ईमेल जमाना है फिर मैं क्यों आज भी उन्हें चिट्टी लिखती हूँ ।
ख़ैर.... 
जब मैंने उन्हें पहली बार  मनी आर्डर भेजा था  उन पैसों का पहला नोट उन्होंने आज तक संभाल के रखा है ।  
फ़ाइल में रखा हुआ है आज भी जिस पर तारीख लिखी हुई है,मेरी पहली कमाई का नोट ।
दीदी ने मुझ से कहा, क्यों इतनी परेशान होती हो क्यों पोस्ट ऑफिस में जाती हो,ऑनलाइन पैसा भिजवा दो ।  
पैसे मिलने से मतलब है । 
पर मैं पापा को जानती हूं ,मैं जानती हूं कि जब पोस्टमैन घर का गेट खड़खड़ायेगा, जब पापा उठ कर दरवाज़ा खोलेंगे तो बिना यह जाने कि पोस्टमैन मनी आर्डर लाया है या कोई चिट्ठी उनके चेहरे पर एक मुस्कुराहट खिल जाएगी गोया पोस्टमैन नही कोई सुपरमैन आया हो, पोस्टमैन को बरामदे में बैठाएंगे  चाय पानी पिलाएंगे ,इधर-उधर की बात करेंगे, बताएंगे कि मेरे बेटे कहां है मेरी बिटिया कहां है ,वे क्या कर रहे है, आज भी कितना ख्याल रखते है, बेटी को हज़ार बार कहा है कि "पैसे न भेजा करो,तब भी देखो मानती नहीँ " इत्यादि....
इतनी देर में कुछ मिठाई नमकीन भी  आ जाएगा ।

कुछ देर बाद जब पोस्टमैन यह कहेगा कि अच्छा साहब अब चलता हूँ और ये कहते हुए, वह पापा को  चिट्ठी या मनी आर्डर पकड़ायेगा , तब जाने कितने भाव उनके चेहरे पर आकर गुजर जाएंगे जाने कितनी ही  हिलोरे उनके ह्रदय में  उठेंगी , और रोते हुए चेहरे में जब मुस्कुराहट आएगी तो थोड़े से फनी फनी भी लगेंगे । बहुत देर तक वहीँ  बरामदे में  बैठेंगे , गार्डन में लगे फूलों को देखेंगे वो सारी कलाकृतियां को देखेंगे जो कभी हम बनाकर घर में छोड़ गए हैं ,भरी आंखों से पुराने दिन याद करेंगे ।
 मनी ऑर्डर फॉर्म को कई बार देखेंगे उसके पर लिखी लिखावट को अपनी उंगली के पोरों से महसूस करेंगे 
चश्मा उतार के पढ़ेंगे, चश्मा पहन के पढ़ेंगे ,
फिर उन नोटों को बड़े प्यार से सहलायेंगे , नोटो को इतनी सावधानी से रखेंगे मानों कोई इस्त्री किये गए 
कीमती कपड़े हो !

फिर जब तक मम्मी आवाज़ न लगाएं,तब तक ख्यालों में खोए बाहर ही बैठे रहेंगे....ऐसा नहीँ की वो दुखी होंगे, पर हाँ, भावुक हो जाते है, कुछ पलों में ही बीता सब जी जाते है, मेरा बचपन, अल्हड़पन, घर से निकलना ,शादी का होना,सब रील की तरह उनकी आंखों के सामने से गुज़र जाता है । उनका प्रिय शगल है यादों की जुगाली करना और यादों में खो जाना ।
जाने कितने दिनों तक उन पैसों को हाथ नहीं लगाएंगे कोशिश करेंगे कि इसमें से कुछ से कुछ खर्च न हो, पर पैसा तो हाथ का  मैल है खर्च हो ही जाता है ।
मैं फिर उन्हें मनीआर्डर भेजूंगी , और भेजती रहूंगी ताकि वो यादों की की जुगाली करते रहे और खुशियों के पल जीते रहे !

मीता.एस.ठाकुर
Aka Mrs Hakuna Matata


Comments

Paritosh said…
ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन वो बारिश का पानी।

हर समय हर मौसम हर पल का अपना ही मज़ा है। फिर वो मनीऑर्डर हो या पोस्ट कार्ड या अन्तर्देशी सब में बहुत भाव था अब दुनिया तो पास आ गयी लेकिन लोग दूर होते जा रहे। e-Mail, e-Commerce, e-Store के ज़माने में गनीमत है भावनाएं अभी e-Emotions नही हुई हैं शायद इसलिए भी क्योंकि उसमें पहले से ही E मौजूद है।

अपने बचपन मे ले जाता एक बेहद भावुक और दिल को छू लेने वाला लेख पढ़ते हुए ऐसा लगा मानो समय के टेप रिकॉर्डर में रिवर्स का बटन दबा दिया गया हो।
👍👍👍