कमाल के gloves , Kamal ke Gloves

कमाल के gloves

ठंडी के दिन क्या आये, हर तरफ ऊन के ढेर में सिमटे लोगों का हुज़ूम नज़र आने लगा । सर्दी का कहर जारी था अपने आप को सर्दी से बचाते लोग पूरी तरह से ऊन के ढेर के बीच में दबे हुए थे ।
दिन चढ़ते चढ़ते जब सूरज दिखाई देता सब सभी आंगन में निकलते, ग्राउंड में में निकलते और धीरे-धीरे पता चलता कि कौन क्या है, वरना तो पहचान में ही कोई नहीं आता।
सुबह का स्कूल होता है कड़ाके की ठंड और  कोहरे की चादर के बीच उनींदी आंखें और अलसाया शरीर ले कर जब स्कूल बस में बैठो, तो सच मे कई बार रुलाई फूट पड़ती , ठंडी सीट पर बैठते ही लगता है, मानो अलास्का की सैर पर निकले हो ।

 ऐसी ही एक दिन कड़ाके की ठंड में खुद को समेटे  हुए मैं बस में बैठी और मन ही मन इस ठंड पर लानत भेजती रही तब, दूसरे स्टॉप पर बस रुकी तो बस में "happy-chatter-box" चढ़ा और इस "happy-chatter-box" का नाम है "अथर्व "
अपनी टीचर-मम्मा के साथ कई बार "अथर्व" भी स्कूल आता है, हमारी बहुत बातें होती है ,वो और मैं ऑफिशली फ्रेंड बन चुके है,इस बात की जानकारी वो अपनी मम्मी को भी दे चुका है, हालांकि 5 वर्ष के "अथर्व" की बातें किसी ज्ञानी बाबा से कम नहीँ होती ।
वह नहीं जानता कि उसकी मासूमियत आगे सब कुछ फेल है, जब वह अपनी बड़ी बड़ी आँखों को और बड़ा कर के किसी बात को बताता है,तब गैरमामूली बातों में भी वज़न पैदा कर देता है ।
अपने दाऊ-साहब से उसे बड़ा प्यार है,उसका प्रिय शगल है उनके साथ कार में बैठना वो भी सामने और लांग ड्राइव पर जाना ।
उसकी बातें, अनोखी बातें,दूसरी दुनिया की बातें ,बेवजह की बातें,अनमोल बातें ,उसकी बातों के पिटारे में इतनी बातें हैं कि खत्म ही नहीं होती ।
 वह बस में चढ़ कर मेरे साइड में बैठा उसने लाल कलर के gloves  पहने हुए थे ,उसके चेहरे पर एक चमक थी,वह
मेरे पूछे बिना ही बोल पड़ा ," पता है आपको यह जो gloves   है ना ये जादू के gloves हैं..
 कमाल के gloves हैं ,इनमें बहुत कमाल है " ।
मैंने बड़ी उत्सुकता से उसकी बातों में रुचि दिखाई और कहा अच्छा क्या वाकई में कमाल है तो बोलो ना जरा इन gloves से  कि ठंड कम कर दे ,
तो वह बड़ी मासूमियत  से बोला " ठंड कम हो जाएगी थोड़ा समय तो बीतने दीजिए' उसके ऐसा कहने से मैं निरुत्तर हो गई !
"अथर्व" से पूछने पर पता चला कि ये "कमाल के gloves" उसके "मामा-साहब" लाये थे ,मैंने भी अपनी एप्लीकेशन डाल दी कि मुझे भी red कलर के कमाल के gloves चाहिए । "अथर्व" ने वादा किया कि वह अपने मामा-साहब से बोल कर मेरे लिए भी "कमाल के gloves" मंगवा देगा ।

स्कूल पहुचते तक इस तरह की कई बातें मेरे और उसके बीच होती रही ,अथर्व एक बहुत प्यारा बच्चा है
 हाजिर जवाब है और उसकी सबसे अच्छी बात यह है कि उसका बचपन उसके साथ है, वह अपनी उम्र से बड़ा नहीं  उसकी बातें आपको आपके बचपन की याद दिलाती हैं याद दिलाती हैं कि, कभी आप भी इतने ही मासूम थे इतने ही दुनिया की बातों से अनछुए थे ।
 आप की भी अपनी एक दुनिया रही होगी
 आप की दुनिया में  भी कमाल के gloves या ऐसा ही कुछ रहा होगा ।
"अथर्व" की आंखों से जब मैं दुनिया को देखती हूं तो दुनिया के मायने बदल जाते हैं ,दुनिया खूबसूरत हो जाती है ,वक्त ठहर जाता है, हर बेवजह चीज में एक मतलब दिखाई देने लगता है, वह बेकार पड़े पत्थरों में भी आकार ढूंढ लेता है। छोटी छोटी सी मामूली बातों में बेहद खुश हो जाता है ।
 और उसकी बोली ऐसी लगती है मानों बहुत सारी चिड़िया चहचहा  रही हो ।
सचमुच हम सब को भी उसके जैसा हो जाना चाहिए ।
साधारण से gloves  उसके हाथों में आते ही कमाल के के हो गए ।
वह दिन भर इस खुशी में झूमता रहा कि उसके gloves "कमाल "के हैं 
वह मानों सपनों की दुनिया में था ,उछलता कूदता, अपने gloves पर खुश होता। 
 और सचमुच उसके "gloves"कमाल ही के थे, क्योंकि उसके "gloves" से निकलती खुशियों ने मेरे दिल को गर्माहट से भर दिया था ।
सचमुच में उसके gloves कमाल के थे खुशियों से भरे जादू से भरे मासूमियत से भरे ।
हम सभी के पास ऐसे कमाल के "gloves होने चाहिए
 जो इस भागते हुए वक्त में कुछ पलों के लिए सुकून दे सके।
"कमाल के gloves" 

Comments

Paritosh said…
कुछ कमाल ग्लव्स का है बाँकी कमाल अथर्व का। क्योंकि ग्लव्स के मायने और उसका कमाल उसको पहनने वाले के साथ बदलता जाता है।
अजीब सी दुविधा है आज के समय में खासकर बच्चों को लेकर उन्हें माता-पिता में। बच्चे छोटे हैं तो कब तक छोटे रहोगे और बड़े हो गए तो अभी इतने बड़े नहीं हुए कि ऐसी बातें कर सको। अनुशाशन और भावनाओं में वही रिश्ता है जो एक छड़ी के दोनों छोर में होता है।
बचपन और उसकी मासूमियत को बताती मन को सहज ही आनंद देती एक सच्ची घटना जिसे खूबसूरत शब्दों में बयान करती मिसेज़ मटाटा की ये कहानी बेहद ही मासूम और उतनी ही खूबसूरत है।