बूंदी के लडडू Bundi के Laddu

 बूंदी के लड्डू 


जबरदस्त ठंडी के बावजूद भी 26 जनवरी के दिन विद्यार्थियों का जमावड़ा स्कूल में था। आज कोई भी अनुपस्थित नहीं था, ना कोई शिक्षक ,ना ही कोई छात्र
ध्वजारोहण और रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम के बाद बारी आती है बूंदी के लड्डू के वितरण की, यही है इस कहानी का मुख्य विषय ।
हालांकि बूंदी के लड्डू में ऐसा कोई आकर्षण या स्वाद नहीं है जो इसे अतिमहत्वपूर्ण बना दे ।
पर अगर यह बूंदी के लड्डू 15 अगस्त या 26 जनवरी के होते हैं तो इनका स्वाद दुगना हो जाता है। यह किसी दैवीय प्रसाद की तरह हो जाते हैं, जिसे पाना जरूरी है और खाना उससे भी ज्यादा जरूरी ।
आज सुबह से ही पिंकी स्कूल में व्यस्त थी, सांस्कृतिक कार्यक्रम में टीचर की मदद करती, सहेलियों को नृत्य के लिए सजाने में मदद करती ,कभी किसी टीचर का कहा मानती, कभी किसी छोटे बच्चों को शांत कराती ,तो कभी किसी बड़े बच्चे को इधर उधर जाने से रोकती आखिर वह एक सीनियर स्टूडेंट्स थी ।
स्कूल का सारा कार्यक्रम व्यवस्थित ढंग से हो ये उसकी भी जिम्मेदारी थी अपनी जिम्मेदारी को वह बखूबी निभा रही थी ।
26 जनवरी को या 15 अगस्त दोनों का ही उसके जीवन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान था ।
सुबह से ही स्कूल के प्रांगण में देशभक्ति के गीत गूंज रहे थे मेरा रंग दे बसंती चोला, छोड़ो कल की बातें कल की बात पुरानी या फिर ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंखों में भर लो पानी,  मेरे देश की धरती उगले  हीरे मोती ।
गाने के अंतरों के साथ-साथ उसके पूरे शरीर में रोंगटे आ जाते हैं यह गीत मानो उसकी आत्मा में रच बस गए थे वह उन शहीदों को याद करती जिन्होंने अपना जीवन दान दिया । जिनकी बदौलत से आजादी हमें मिली ।
 वह भावुक थी लेकिन प्रत्यक्ष में ऐसा दर्शाती थी
 मानो  भावुक होना उसे कतई पसंद नहीं ।
उसकी आंखें बार-बार भर आ रही थी ।
अगर उसे कोई पूछे तो वह बताएं कि पसंदीदा लोगों के लिस्ट में अगर किसी का नाम सबसे ऊपर है तो वह चंद्रशेखर आजाद का है । मन में तो वह चंद्रशेखर आजाद जैसा ही बनना चाहती थी ।अपनी मर्जी का मालिक अपनी शर्तों पर जीने वाला ,जन्मभूमि के लिए जान देने वाला वीर  और जो कभी दुश्मन की गोली से नहीं मारा गया ।
खैर ,धीरे धीरे कार्यक्रम अपनी गति पकड़ता गया ,स्कूल  के प्रांगण में लाउड स्पीकर पर बजने वाले गीत बन्द हुए , ध्वजारोहण हुआ और सांस्कृतिक कार्यक्रम का आरंभ हो गए ।
धीरे-धीरे सांस्कृतिक कार्यक्रम भी खत्म हो गए ,धूप चढ़ने लगी अब विद्यालय के समाप्त होने का समय था सारे छात्रों की लाइन बनाई गई ,क्योंकि वह सीनियर छात्रा थी इसलिए लड्डू तो उसे शायद आख़िर में ही मिलते और क्या पता कि उसकी बारी आते-आते लड्डू खत्म भी हो जाए क्योंकि अक्सर ऐसा होता था ।

छात्रों की लाइन बनाने में व्यस्त उसका मन अपने कर्तव्य का पालन करने के लिए जोर देता और मन में ही एक और आवाज उठती लड्डू कहीं खत्म ना हो जाए ।
खैर धीरे धीरे कक्षा 1 से लेकर कक्षा 10 वी तक के सारे छात्रों को लड्डू बंट गए ।
 अब 11वीं और 12वीं के छात्रों की बारी थी।
 धीरे-धीरे उसकी भी बारी आई और क्या कहे किस्मत को एक पैकेट में दो लड्डू मिलते हैं और उसे 4 पैकेट मिल गए 
वह खुशी से झूम उठी सहेलियों ने कहा तुम तो इस तरह से खुश हो रही हो मानो कोई अनमोल खज़ाना मिल गया हो हमारे लड्डू भी ले लो ।
उसने मन ही मन मुँह बनाया और सोचा ,"अरे तुम क्या जानो कि 26 जनवरी और 15 अगस्त के लड्डुओं का क्या महत्व है, घर स्कूल से 1 घंटे के फासले पर था इसलिए बस से सफर करना पड़ता था वह अपने बैग को संभालते हुए बस में चढ़ी मानो बैग में कोई अनमोल खजाना छुपा हो । जैसे ही बस में चढ़ी ड्राइवर अंकल ने कहा "और बिटिया लड्डू नहीं खिलाओगी,आज तो 26 जनवरी है ना ,तुम्हारा  त्योहार" उसने तुरंत टोकते हुए कहा "तुम्हारा नहीं चाचा हमारा त्यौहार " 
"अरे हां बिटिया तुम्हारा तो इसलिए कह दिया क्योंकि तुम्हें लड्डू मिलते हैं ना, अब हम तो बच्चे नहीं की हमें लड्डू मिले ,आप बताओ लड्डू खिलाओगे या नहीं"
 उसने मन ही मन में हिसाब लगाया कि मेरे पास लड्डू के 4 पैकेट है हर पैकेट में दो लड्डू है यानी कि मेरे पास 8 लड्डू हुए ।
 अब मना कैसे करती, मन मार कर उसने लड्डू का पैकेट खोला एक लड्डू कंडक्टर को दिया दूसरा लड्डू ड्राइवर चाचा को दे दिया ।
 अभी तो तीन पैकेट बाकी है ।
उसने खुद अभी तक एक भी लड्डू नहीं खाया था 
"दो लड्डू तो मैं अपने लिए ही रखूंगी "उसने मन में कहा । "दो लड्डू मम्मी पापा के लिए और एक लड्डू दादू के लिए और एक लड्डू रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर याने की कैप्टन अंकल के लिए जो कि कॉलोनी में रहा करते थे ।
लड्डू खाकर ड्राइवर अंकल बोले "बिटिया मजा आ गया बहुत स्वाद लड्डू था, पर हमारे यहां के हलवाई के लड्डू की बात ही कुछ और है " 
उनके ऐसा कहते ही उसका मुंह बन गया "हुंह ,यह क्या जाने 26 जनवरी के लड्डू का स्वाद ,फालतू ही दिया  व्यर्थ चले गए मेरे लड्डू ।
घर पहुंची तो देखा सरिता अभी अभी काम करके निकल रही थी सरिता यानी कि काम वाली बाई उसने पिंकी को देखते ही कहा " अच्छा दीदी बताओ हमारे लिए नहीं लाई लड्डू, हमें भी तो लड्डू दो, पिंकी से  उसने बचकर निकलना चाहा लेकिन वह भी अड़ गई 
"हम नहीं जानते, हमें तो लड्डू चाहिए"
 हार कर उसे लड्डू का एक पैकेट देना पड़ा ।
 अब बचे थे दो पैकेट याने की चार लड्डू ,अगर सबको दे देगी तो वह खुद क्या खाएगी।
मूड तो खराब हो चुका था पर वह जानती थी पापा उसका इंतजार कर रहे हैं पापा को भी उसी की तरह 26 जनवरी और 15 अगस्त के लड्डुओं का स्वाद लेना था यह केवल लड्डू नहीं थे यह निशानी थी उन सारे लोगों के त्याग की, बलिदान की, प्यार की, सम्मान की ,अपनी जन्म भूमि के प्रति जिन्होंने अपनी जान दे दी उनकी ।
" यह लड्डू प्रतीक है आजादी के" इसीलिए वह पापा के सामने मुंह बनाकर नहीं जाना चाहती घर के भीतर आई तो देखा पापा आराम चेयर पर बैठे हैं नजरें गड़ाए हुए हैं दूरदर्शन पर परेड का रीटेलीकास्ट देख रहे हैं ।
उसे देखते ही पापा को बोले
 "आ गई मेरी झांसी की रानी कैसा रहा प्रोग्राम और क्या क्या हुआ स्कूल में विस्तार से बताओ और हां लड्डू कहां है "?
 स्कूल बैग को एक तरफ पटक वह पापा के गले झूम गई बड़े प्यार से उन्हें उनके गले में हाथ डाल कर बोली ।
"हां पापा ,लाई हूं ना आपके लिए लड्डू सब से बचते बचाते यह अनमोल खजाना लाई हूं अब इससे पहले कि कोई खा और खा ले  आप इन्हें खा लीजिए मैं अभी लेकर आई ।
वाह किचन में गई,  प्लेट में लड्डू निकाले और पापा के पास ले गई, लड्डू को देखते ही पापा की आंखों में चमक आ गई, वह बोले बिटिया अहोभाग्य कि हमें यह लड्डू मिले उन्होंने लड्डू का एक टुकड़ा मुंह में डाला और आंखों को यों बंद किया जैसे उन्हें अमृत का स्वाद आ गया हो इस तरह दो लड्डू पापा के पेट में पहुंच गए , जिसकी उसे बहुत खुशी थी बहुत खुशी क्योंकि वह जानती थी कि इन लड्डुओं की कीमत पापा जानते हैं ।
फिर वह दौड़कर  "दादू" के पास पहुंची ,अभी भी दो लड्डू बाकी है दादू को एक लड्डू दिया ।
"दादू" के साथ उसकी एक जुगलबंदी थी "दादू" ने ना जाने कितने स्वतंत्रता सेनानियों की कहानियां उसे सुनाई थी । आजादी के कितने अनोखे किस्से उसने दादू से सुने जो किसी किताबों में नहीं लिखे जो किसी दस्तावेज में नहीं ।  इसलिए आजादी के लड्डूओं पर तो "दादू" का हक बनता ही है ।
फिर उसने दौड़ लगाई कैप्टन अंकल के घर की तरफ अंकल के घर पहुंची पांव छुए और गले लग कर गणतंत्रता दिवस की बधाई दी ।
अंकल रिटायर थे लेकिन आज के दिन अपनी यूनिफार्म में रहा करते थे ।
 उन्होंने उसे बैठक में बैठाया और नौकर को इशारा किया  वह एक ट्रे  बहुत सारी प्लेट ए सजा कर ले आया    हर प्लेट में अलग तरह की मिठाइयां सजी हुई थी ।
 गुलाबजामुन, रबड़ी, रसमलाई ,काजू कतली और जाने कितने तरह के नमकीन ,इतना सब सामने  रखा देखकर उसने अपनी हथेली में लड्डू के पैकेट को छिपाना चाहा, जोकि कैप्टन अंकल की नजरों से बच ना सका ,वे बोले "अरे बिटिया यह सब तो तुम्हें रिश्वत के तौर पर दे रहा हूं ताकि तुम मुझे वह अनमोल वह मीठास से भरे लड्डू दे दो जो तुम हर साल की तरह इस बार भी मेरे लिए लाई हो' ।
वह हिचकीचा रही थी कि ,इन सारे पकवानों, मिठाइयों के सामने वह उन दो लड्डुओं की क्या बिसात ।
ख़ैर संकोच से ही सही, उसने लड्डू का पैकेट अंकल के हाथों में पकड़ाया ।
उसके सामने बैठे , अंकल उन लड्डुओं को यूं खा रहे थे मानो कोई अनमोल स्वर्गीय पकवान खा रहे हो ।
 लड्डू के हर कतरे के साथ उनके चेहरे पर तृप्ति के खुशी के जो भाव आ रहे थे वह देखते ही बनते थे ।
खैर पिंकी को  खुशी थी कि,आज उसे तो लड्डू नहीं मिले किन्तु,जो उन के लिए लालायित थे,उन्हें तो मिले..
जब कैप्टिन अंकल के यहाँ से लौटने लगी तो, उन्होंने उसे रोका और बूंदी के लड्डुओं का एक डब्बा  पकड़ दिया और मूछों पर ताव देते हुए बताया कि ,आज स्थानीय स्कूल में उन्हें चीफ गेस्ट के तौर पर आमंत्रित किया गया था, ये लड्डुओं का डब्बा वहीं से मिला था उन्हें|

 वह बहुत खुश थी,जो उसने दिया उसका जाने कितना गुना बढ़ कर उसे मिला, बूंदी के ये लड्डू तो किसी हलवाई की दुकान पर बड़ी आसानी से मिल जायेंगे किन्तु ये कीमती तब ही बनेंगे जब ये ध्वजारोहण और जन-मन के बाद वितरित हो।
  

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