मंझली बहू Manjhli Bahu

 

घर की मझंली बहू तेजी से कपड़े धो रही थी ।
अभी-अभी नाश्ते के काम निपटा कर खाली हुई थी ।

 फिर खाने की तैयारी भी तो करनी है ,छुट्टी के दिन तो जरा चैन नहीं मिलता । स्कूल की छुटटी होने पर बच्चो की खाने की फरमाईश पूरी करने के साथ साथ कपडो के ढ़ेर से भी निपटना पडता है ।
बड़ी बहू की पूजा पाठ  देर तक चलती है उनके लिये तो पूजा ही कर्म है , और छोटी बहू का मन होता है तो मदद करवा देती है अन्यथा आराम से सो कर उठती है  ,फिलहाल तो वह सासू माॅ के सर पर तेल मालिश कर रही है ।

" बच्चें थोड़ी देर में ही भूख से कलप कर चिल्लाने लगेंगे ,फिर तो आज सभी साथ में खाना खायेंगे ,इसीलिये खाने में कुछ तो खास होना ही चाहिये", सोचते हुये मंझली बहू के हाथ और तेजी से चलने लगे  रात को ही उसने छोले भिगो कर रख दिये थे ।
तभी उसका ध्यान बंटा ,बच्चो के उधम करने पर ससुर उन 

पर चिल्ला रहे थे ।

उफ ये बच्चे, कह कर बिना ज्यादा ध्यान दिए
 वह फिर अपने काम में लग गई, जबकि बडी औेेर छोटी बहू फौरन अपने बच्चो की पैरवी करने पहुॅच गई ।
मम्मी --मम्मी  देतो न दादा ने मुद को ताफी नहीं दी छब बंती भैइया और छोनू को दे दिये ,और मुद को मारा क्यो’?’
माॅ का आँचल खीचते हुए बच्चा मचलने लगा। मंझली बहू ने बडे़ प्यार से उसे अपने अंक में समेट लिया और बोली '‘ बेटा टॉफी खाने से दाॅत खराब होते है न इसीलिये दादा ने तुम्हे नहीं दी ,समझे जाओ दादा से साॅरी बोलो तुम राजा बेटा हो न ’' 

 

बच्चा चला गया और उसने श्याम वर्ण वाली दुबली पतली काया को उठाया और फिर काम में लग गई। बच्चो की बातो में उलझ कर कई बार बडी और छोटी बहू के बीच भयानक झगडे हो चुके है ,उसे ये सब बाते ओछी लगती वह पूरी कोशिश करती की उसका बेटा कभी किसी कलह का कारण न बने ।
उसके पति ने उसे अपने माता पिता की मर्जी के खिलाफ चुना था ,सास ने कहा भी था  ‘'जाने इस सूखी मरी हुइ काली काया में तुझे क्या दिखाइ दे रहा है बड़ी के सामने इसकी कोई बिसात नहीं, ये तो उसके सामने नौकरानी भी नही लगेगी उपर से कंगाल घराना और माॅ बाप भिखमंगे,कुछ दहेज भी नही मिलने वाला '’
पर बेटे ने किसी की न सुनी । उसे वह मगृनयनी भा गई थी  

शांत ,सौम्य ,छरहरी काया और काली लहराती केश राशि, तीखे नैन नक्ष बस दो ही कमियां थी उसमें एक तो सावंला रंग और दूसरी दहेज देने की असमर्थता ।

बेटे की जिद् के आगे मां बाप झुक तो गये पर मन से कभी उसे बहू नहीं माना ।
जब से उसने घर में कदम रखा चक्की बनी हुइ है घर का एक एक काम करती ,कडवा सुनती परतुं मुहॅ से कभी कुछ कड़वा नही निकाला ।
बच्चे के जन्म पर सास- ससुर खुश हुए, किन्तु बच्चे का

  साॅवला  रंग देख कर उनका मुहॅ उतर गया ,एसा हुआ मानो स्नेह का कुॅआ ही सूख गया हो ,दोनो बेटो के बच्चे मानो रुई के फोहे थे साफ चमकदार रंगत वाले उनके सामने "पोटुल" का सावला रंग उन्हे नागवार गुजरता ।

"पोटुल" यही नाम रखा था पति ने, उसने कहा भी ये क्या नाम हुआ ’,तो पति ने उसे प्यार से मुस्कुराते हुये कहाक्योकी ये हमारे प्यार की पोटली है ,इसलीये इसका नाम पोटुल रखा है,लडकी होती तो उसका नाम "पोटली" रखता ।  

उसका पति एसा ही था सबसे अलग ,दिन रात उसे सराहता प्यार करता और प्यार से उसे प्यारी कहता ।कभी कभी वह उससे कहता की तुमसे शादी करके मैंनें

तुम्हारे  साथ बहुत ज्यादती की है ,आखिर क्या मिला है तुम्हे इस घर में ,अपमान काम काम और काम ’,

इस पर वह उसके होठो पर हथेली रख कर मधुर स्वर में कहती ,‘मुझे तुम मिलो हो और क्या चाहिए ।

फिर एक लंबी सांस भर कर अपने काम में लग जाती 

रात ढ़लने पर काम से थक कर चूर जब बिस्तर पर ढ़ेर हो 

गई तो पति ने प्यार से सर पर हाथ फेर कर पूछा

 ‘क्यो इतना काम करती हो भाभीयो की मदद क्यों नहीं लेती ,कल ही अम्मा से बात करुंगा ,नौकरानी बना कर रख दिया है  

सुन कर वह हौले से मुस्कुरा दी  धीरे से बोली 

 ‘मन का ना मिले तो इंसान दुखी हो ही जाता है एक दिन जब रुप रंग का भ्रम टूटेगा तो उनके ह्रदय

से प्रेम की नदी  बह निकलेगी  फिर फसल काटने के लिये बीज़ तो बोने पडेगे और जब तुम साथ हो तो पीड़ा भी अमृत है 

पति मोहित हो कर उस मृगनयनी को देखता रहा 

उसने मन में कहा

‘ कौन कहता है ये सुंदर नही  धैर्य ही इसकी सुंदरता है


Comments

Anonymous said…
nice stoty