काहे का दुःख...

बहुत दिनों से पैरों की पिंडलियों में दर्द था , मिस्टर मटाटा ने डांट पिलाई विटामिन डी-3 टेस्ट करवा लीजिये बेगम,क्यों  पिडलियों  के दर्द का रोना रोती रहती हो, मुझे डांट पिला कर उन्होंने थायोकेयर में फ़ोन लगवाया और किसी कर्मचारी को घर भेजने को कहा ताकि ब्लड का सेम्पल लिया जाया सके , किन्तु दूसरी तरफ से कहा गया कि इतनी ठंड गलन बारिश और कोहरे भरे मौसम में कोई सुबह सुबह घर नही आ पायेगा, काफी अनुरोध के बाद वे मान गए और वादा किया कि किसी महिला कर्मचारी को अलसुबह घर भेज देंगे ताकि हम खाली पेट रह कर ब्लड सेम्पल दे सके ।
24 दिसंबर की रात क्रिसमस की तैयारी में निकल गई, इतना काम था कि सिमट ही नही पाया, आधी रात लाइट चले जाने के कारण सारा काम ठप्प पड़ गया, कटकटाते दांतो ने संकेत दे दिया कि अब रजाई में चला जाये ,और रजाई में घुसते ही नींद ने धर दबोचा, बीच रात नींद खुली तो अहसास हुआ कि लाइट गोल है, खैर लाइट को लानत मारते हुए मैं फिर सो गई  ! सुबह सुबह पतिदेव के फोन की घण्टी घनघना उठी, "उफ कौन है इतनी सुबह,लोगो को भी चैन नही है,छुट्टी के दिन भी सोने नही देते"बड़बड़ाते हुए मैंने पतिदेव को फोन पकड़ाया और खुद को रजाई की गर्माहट के हवाले कर दिया ।,आगे सुना कि वे किसी को घर का पता बता रहे थे,यानी कि अब उठना ही होगा, खुद को गर्म कपड़ों से लैस कर मैं उठी तो पता चला कि थायोकेयर से कोई महिला कर्मचारी आई थी हम दोनों का ब्लड सेम्पल लेने , मैं बहुत उत्सुक थी उस वीर साहसी महिला को देखने के लिए जो सूरज को भी चुनोती दे रही थी,इस मौसम में जब कि सूरज भी निकलने में डर रहा था ,वो वीर योद्धा की तरह निकल पड़ी थी, चूंकि लाइट गोल थी,और सूरज भी कहीं कम्बल लपेटे पड़ा था ,इसीलिए अंधेरा था ,बैठक में आ कर देखा मोबाइल टोर्च की रौशनी को एडजेस्ट करते हुए माध्यम कद-काठी और साँवले रंग की महिला गर्म कपड़ों में खुद को समेटे बैठी  थी। मुझे देखते ही उसने खनकती आवाज़ गुड-मॉर्निंग कहा,
"आप लोगो को सुबह सुबह परेशान कर दिया न मैंने ",उसने मुस्कुराते हुए कहा, "अरे नहीँ, आपने तो हमें ,उबार दिया ,इतनी सहूलियत दे कर ,सच में , मैंने उत्तर दिया ।
सुन कर उसे अच्छा लगा , वह अनवरत बात कर रही थी, मुझे अच्छा लगता है मैडम, जब मैं किसी की मदद करती हूँ, आखिर इंसान का जन्म होता किसलिए है,और फिर यहाँ पर तो मैं अपना काम ही कर रही हूँ...., 
मैं उसकी बातें सुनते हुए सोच रही थी "हुहं , ये सब कहने की बात हैं,  
उसकी बातें जारी थी, मैंने देखा, उसकी हथेलियां बहुत सख्त और झुर्रियों से भरी हुई थी,जो इस बात की गवाही थी कि वो एक मेहनत कश महिला थी..!
जब मेरा ब्लड सेम्पल लेने की बारी आई तो मैं सिहर गई, ठंडी  नीडिल, ठंडे हाथों का स्पर्श उफ...मुँह से आह निकल गई..तब वह बहुत ही आत्मविश्वास भरे स्वर में बोली"अरे घबराइये नही मैडम, मेरे हाथों से किसी को दर्द नही होता ,आप बस कहीं और देखिये,पता भी नही चलेगा आपको और काम हो जाएगा ,कहते हुए उसने कब ब्लड ले लिया मुझे सचमुच पता नहीं चला, उससे और बात करने की गरज़ से मैंने कहा," देखो त्योहार का दिन है, और कल रात से लाइट गोल है," , इस पर वो हंस कर बोली "अरे मैडम, अच्छी बात तो ये है कि चाहे बत्ती हो न हो अपनो का साथ हो तो उजाला अपने आप हो जाता है, है न भैया, बात बात पर वह मेरी या इनकी सहमति भी लेती जा रही थी,।
देखिये अभी नया साल आएगा,लोग मेसेज भेजेंगे, ग्रीटिंग कार्ड देंगे पर कोई आ कर गले नही मिलेगा ,क्योंकि उन्हें अहसास नही है कि ये साल इसीलिए खास है क्योंकि वो ज़िंदा ,अपने परिवार के साथ है,उन्हें ईश्वर का धन्यवाद करना चाहिए इस बात के लिए, है कि नही , उसने मेरी सहमति ली, मैंने भी हां में अपना सर हिलाया,नए साल में प्रवेश कर जाना ही ऊपर वाले कि नेमत है ,पर लोग इस बात को समझते ही नही
न जाने कौन सा पल आखिरी हो, इसीलिए सब से बोलते बताते रहना चाहिए ,  वह बोली
"अच्छा ,तो क्या आप का कभी किसी से झगड़ा या कहा सुनी नही होती, मैंने पूछा ,वह तपाक से बोली " क्यो नहीं, होता है न ,कई बार होता है,झगड़ा करने या कहासुनी में दिक्कत नही,दिक्कत है मन मे गांठ बांध लेने में , मेरा तो ऐसा है की मैं हमेशा आगे बढ़ कर माफी मांग लेती हूँ, चाहे मेरी गलती हो या न हो, ।
बात बात में वह अपने अधिकारी की भी तारीफ करती रही, की सर बहुत अच्छे है,मैडम भी बहुत अच्छी है, बहुत अच्छे इंसान है दोनों इत्यादि,ऐसा कम ही होता है कि कोई अपने अधिकारी की इतनी सहजता से तारीफ करे ।
आगे बात करने पर पता चला कि, वह तीन बहने है ,बहुत भरा-पूरा परिवार है,पूरा कुनबा एक ही जगह पर रहता है ,35 पार है,अविवाहित है,किन्तु कहीं किसी प्रकार की कुंठा नहीं ,पिछले 10 सालों से थायोकेयर में काम कर रही है,बहुत ज्यादा तनख्वाह की भी चाह नहीँ, बस अच्छे लोगो का साथ होना चाहिए ।
इतना सब जानने के बाद नाम पूछा तो पता चला कि नाम है "बेला" , 
उसके लिए चाय बनाते हुए मैं सोच रही थी कि इसने हमें केवल नींद से नही जगाया,बल्कि सो चूके विवेक को भी जगाया ,मन को भी झकझोरा जो कि भौतिकता को ही सुख मान बैठा था !
चाय की चुस्की लेते हुए वो बोली,आप परेशान न हो रिपोर्ट नॉर्मल ही आएगी ,और जो पिंडलियों का दर्द है ,वह भी ठीक हो जाएगा विटामिन-डी की गोलियां खाइये और खुशियों की धूप सेंकिए ,और फिर वो खिलखिलाते हुए अपना समान समेट कर चलने को तैयार हो गई,मैंने चिंता और उत्सुकता से पूछा, आप कैसे जाएंगी अभी तो कोई ऑटो या रिक्शा भी नही मिलेगा , इस पर वह मुस्कुरा कर बोली अरे कोई बात नही मैडम, कोतवाली चौक ज्यादा दूर नही, मैं वैसे भी पैदल चलना ज्यादा पसंद करती हूं, और वह घर से निकल कर कोहरे में ओझल हो गई , इतनी सारी आशाओं भरी बातों की गर्माहट को अपने ह्रदय में समेटे मैं फिर से रजाई में घुस गई !
उसका नाम सदैव याद रहेगा मुझे वो अपने नाम के अनुरूप ही थी, सुख की बेला, खुशियों और आशाओं की बेला!

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