zindgi ek safar hai suhan।। "ज़िन्दगी एक सफर है सुहाना" ।

 

किसी ने सच ही कहा है 
"जिंदगी एक सफर है सुहाना यहां कल क्या हो किसने जाना" ।
या फिर वह गाना तो सुना ही होगा आपने
 "हम जो चलने लगे तो चलने लगे हैं रास्ते, मंजिल से बेहतर लगने लगे हैं यह रास्ते" ।
सफर के असली मायने तो तभी है जब रास्ते मंजिल से भी प्यारे लगने लगे चाहे मंजिल कितनी भी दूर हो रास्ते दिल को भाने लगे...
पिछले संडे कुछ ऐसा ही हुआ Mrs Matata अपनी गिरती हुई तबीयत को संभालते हुए किचन में कुछ पकाने की कोशिश कर रही थी ...
तभी मिस्टर में टाटा ने कहा "

अरे छोड़िए भी श्रीमती जी एक संडे का ही दिन तो मिलता है आपको ,चलिए आज आपको आलू के पराठे खिलाते है"..।

 और फिर तय हो गया कि आज तो बाहर जाना है और
" संडे है तो यह संडे को फंडे बनाना है" ।
 पता किसी को नहीं था कि जाना कहां है पर वह गीत सुना है न , आपने "
सुहाना सफर और यह मौसम हंसी हमें डर है हमने खो जाए कहीं "।
उसी तर्ज पर एक पिकनिक बास्केट में चटाई डाली
 पानी का बोतल और एक तकिया डाला और कुछ अच्छे गानों की सीडी लेकर मटाटा फैमिली  चल पड़ी अपनी
 "रामप्यारी" में यानी अपनी कार में..।
कार में क्या बैठे कि पेट में चूहे कूदने  लगे 
तो सबसे पहले मैहर रोड का रास्ता पकड़ा
 एक ढाबा पड़ता है मैहर रोड पर
  "सहस्त्रबाहु ढाबा" ।

नाम के अनुसार ही  है वो ढाबा  जो चाहे मंगा लीजिए ।

मटाटा फैमिली ने भी विचार किया आज किन खाने की चीजों पर हाथ साफ किया जाए और फिर आर्डर किया गया 
आलू पराठा ,पनीर पराठा ,अमरूद की चटनी ,सलाद 
अचार और धनिया चटनी ।
 इतना खाने पर भी लगा कुछ बाकी है अभी 
"सहस्त्रबाहु ढाबे " की खीर कैसे भूल सकते है ।



खीर खाने के बाद लगा कि पेट पूजा पूरी हो चुकी तो,
 मैसेज टाटा ने फरमाया मुझे तो आज भरहुत स्तूप देखना है बस फिर क्या था कार चल पड़ी उस रास्ते पर 
बीच में कुछ सुंदर खूबसूरत से गांव मिले ।

कहीं हरियाली दमक रही थी तो कहीं कोई फसल काट रहा था कोई मवेशियों को नहला रहा था ।
ग्रामीण बच्चे साइकिल पर बैठकर हवाई जहाज का मजा ले रहे थे 
बहुत ही ठंडी हवा चल रही थी ।


 कितना खूबसूरत था चारों तरफ का नजारा बड़ी सी पहाड़ी छोटे बड़े  पेड़ , जमीन पर फैली पीली सरसों ।
बहुत सुंदर था सब कुछ ,पूरे रास्ते में सूखे पत्ते बिखरे हुए थे लगता था कभी  बुद्ध भी  इन्हीं रास्तों पर होकर पर  निकले होंगे ।
कितनी महान विरासत है सतना जिले में ।

भरहुत स्तूप के चारों तरफ घूमते हुए मैसेज में मटाटा ने  
 टिक्कू को कई ऐतिहासिक चीजों के बारे में बताया , और  "टिक्कू
 हैरान-परेशान था , इतिहास की तारीखों में सिर खपाने से बेहतर उसने मौसम का मज़ा लेना ज्यादा सही समझा ।
 
 वापस लौटते वक्त ऐसा लग रहा था जैसे घर ना जाया जाए फिर क्या था कार ट्रैन की पटरी के उस तरफ मुड़ गई 
पटरी के उस पार एक अलग ही दुनिया है जहां की हवा ए.सी की हवा को मात  करती है ।
जहां गाय बैलों के गले में बंधी  घण्टियाँ चाइना की बनी हुई 
विंड चाइम को मात करती है।
जहां के बच्चों का भोलापन सीधे दिल में उतर जाता है ।
 क्रिकेट का क्रेज यहां पर भी बहुत देखा गया
थोड़ी थोड़ी दूर पर बच्चे क्रिकेट खेलने में मगन थे 

 और हां एक घर के सामने आंगन में मिसेस मटाटा ने दो बुजुर्गों को देखा जो दुनिया की हर चिंता से परे बड़े आराम से धूप सेकते हुए पत्ते खेल रहे थे ऐसा इत्मीनान ऐसी शांति बहुत कम देखने के लिए मिलती है 
उस गांव का नाम था " भरहटा" 


मटाटा फैमली पहली बार वहां पर गई थी 
 गाय बैलों के बहुत सारे झुंड दिखाई दिए 
मैसेज में मटाटा ने छोटे छोटे प्यारे प्यारे कुत्ते के पिल्लो का ग्रुप पहली बार देखा काले भूरे सफेद के पिल्ले जैसे कि उनकी अपनी एक क्रिकेट टीम थी 

थोड़ा और आगे बढ़ने पर उन्हें पता चला कि अब वे 
"खुदाहरी " गांव में है 
 एक गांव कब खत्म हुआ दूसरा कब शुरू हुआ यह नहीं पता था ।

एक छोटी सी प्यारी सी नदी गुजरी थी वहां से
 जिसका पानी बहुत शीतल था 
मन किया यही टेंट लगाकर आज का दिन गुज़ारा जाए 
चारों तरफ की हरियाली सुने मैदान हरे-हरे खेत 
सूनी सड़क ,और फ़िज़ा में गूंजते प्यारे  से गीत
 लगा की बस यही जिंदगी है ।
 काफी समय बिताने के बाद मटाटा फैमिली की कार वापस दौड़ पड़ी 
मैहर रोड पर "पालनपुर " नाम का कोई गांव पड़ता है
 जो रोड के किनारे बसा हुआ है रेलवे लाइन के पास  अक्सर देखा गया है कि कुछ लोग जूट से बनी हुई रंग बिरंगी बास्केट बेचते है 
बस फिर क्या था  मिसेस मटाटा ने भी जिद करके एक बास्केट खरीदी ली ।

वक्त बीत रहा था और  सूरज विदा ले रहा था, पहाड़ो के पीछे छिप रहा था,मानो कह रहा हो......
बहुत हो गई आवारागर्दी अब तो घर जाओ दीवानों ,😄


 पर अभी कहाँ ,सतना शहर पहुँच कर मटाटा फैमिली ने 
ओवर ब्रिज के नीचे तंदूरी चाय की दुकान पर चाय का मज़ा लिया ।
कुल्हड़ की चाय में जब कुल्हड़ का सौंधा स्वाद उतरता है, तब क्या कहने....।


इस तंदूरी /कुल्हड़ चाय की भी एक इंटरेस्टिंग कहानी है, पर वो किसी और दिन....।

 घर आ कर मिस्टर मटाटा ने  पूछा "
और बताइए बेगम कैसा कटा आज का दिन"
 तब मिसेस  टाटा ने बड़े ही रोमांटिक तरीके से गीत गाते हुए जवाब दिया " तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी है....।।"





 और फिर दोनों ने "टिक्कू " को गले से लगाया और 
मटाटा फैमिली की हंसी फिजाओं  में गूंज उठी ।

सच  हर सफर कितनी यादें जोड़ देता है जिंदगी की डायरी में  और यही यादें काम आती है थके खाली और बेजान से लम्हों में  जब ज़िन्दगी थकी और उदास होती है
और जब यह यादें याद आती है तो जिंदगी फिर से गुलजार हो जाती है ।

"है ना"...।

मिसेस मटाटा
Aka Meeta s Thakur 


Comments

Ss said…
Hey.... Keep writing like this.. I just love your way of writing..